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उद्योग:
किसी विशेष क्षेत्र में भारी मात्रा में सामान का निर्माण/उत्पादन या वृहद रूप से सेवा प्रदान करने के मानवीय कर्म को उद्योग (Industry) कहते हैं।उद्योगों के कारण गुणवत्ता वाले उत्पाद सस्ते दामों पर प्राप्त होते हैं।
इससे लोगों का रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और जीवन सुविधाजनक होता चला जाता है।
औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में नये-नये उद्योग-धन्धे आरम्भ हुए।
इसके बाद आधुनिक औद्योगीकरण ने पैर पसारना अरम्भ किया।
इस काल में नयी-नयी तकनीकें एवं उर्जा के नये साधनों के आगमन ने उद्योगों को जबर्दस्त बढावा दिया।
उद्योगों के दो मुख्य पक्ष हैं:
1) भारी मात्रा में उत्पादन - उद्योगों में मानक डिजाइन के उत्पाद भारी मात्रा में उत्पन्न किये जाते हैं।
इसके लिये स्वतचालित मशीनें एवं असेम्बली-लाइन आदि का प्रयोग किया जाता है।
2) कार्य का विभाजन - उद्योगों में डिजाइन, उत्पादन, मार्कटिंग, प्रबन्धन आदि कार्य अलग-अलग लोगों या समूहों द्वारा किये जाते हैं।
जबकि परम्परागत कारीगर द्वारा निर्माण में एक ही व्यक्ति सब कुछ करता था/है।
जबकि परम्परागत कारीगर द्वारा निर्माण में एक ही व्यक्ति सब कुछ करता था/है।
इतना ही नहीं, एक ही काम (जैसे उत्पादन) को छोटे-छोटे अनेक कार्यों में बांट दिया जाता है।
भारत के उद्योग
भारत औद्योगिक राष्ट्र नहीं हैं।यह मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र हैं।
आजादी से पहले भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
आधुनिक उद्योगों या बड़े उद्योगो की स्थापना भारत में 19वीं शताब्दी के मध्य शुरू हुई।
जब कलकत्ता व मुम्बई में यूरोपीय व्यवसायियों या उद्योगों के द्वारा सूती वस्त्र उद्योगो की स्थापना हुईं।
प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप गुजरात में सूती वस्त्र, बंगाल में जूट की वस्तुयें, उड़ीसा व बंगाल में कोयला उद्योग, असम में चाय उद्योग का विशेष विकास हुआ।
उस समय सूती वस्त्र के अलावा शेष सभी उद्योगों पर विदेशियों का अधिकार था।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद लौह-इस्पात, सीमेंट, कागज, शक्कर, कांच, वस्त्र, चमड़ा उद्योगों में उन्नति हुई।
दूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत के ओद्यौगिक विकास के मार्ग में कई कठिनाईयां आयी जैसे:-
1) तकनीकी ज्ञान की कमी
2) यातायात के साधनों की कमी
3) बड़े उद्योगो को सरकार द्वारा हतोत्साहित करना।
दोनो महायुद्धों के बीच आजादी से पहले उद्योगों का सर्वांधिक विकास हुआ।
विश्व युद्ध के दौरान हिन्दुस्तान एयर क्राफ्ट कम्पनी, एल्युमिनियम उद्योग, अस्त्र-शस्त्र उद्योगों का विकास हुआ।
विश्व युद्ध के दौरान हिन्दुस्तन एयर क्राफ्ट कम्पनी, एल्युमिनियम उद्योग, अस्त्र-शस्त्र उद्योग का विकास हुआ।
रोजर मिशन की सिफारिश पर जो सन् 1940 में भारत आया था।
इसने भारत के उद्योगों के विस्तार पर बल दिया था।
भारत के प्रमुख लोहा इस्पात उद्योग
उद्योग (Important Iron Industries in India)
लौह एवं इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry)सीमेन्ट उद्योग (Cement Industry)
कोयला उद्योग (Coal Industry)
पेट्रोलियम उद्योग (Petroleum Industry)
कपड़ा उद्योग (Cloth Industry)
रत्न एवं आभूषण उद्योग (Gems and Jewellery Industry)
चीनी उद्योग (Sugar Industry)
लोहा इस्पात उद्योग
देश में पहला लौह इस्पात कारखाना 1874 ईस्वी में बराकर नदी के किनारे कुल्टी (आसनसोल, पश्चिम बंगाल) नामक स्थान पर बंगाल आयरन वर्क्स के रूप में स्थापित किया गया था।बाद में यह कंपनी फंड के अभाव में बंद हो गई तो इसे बंगाल सरकार ने अधिग्रहण कर दिया और इसका नाम बराकर आयरन वर्क्स रखा।
लौह इस्पात उद्योग को किसी देश के अर्थिक विकास की धुरी माना जाता है।
भारत में इसका सबसे पहला बड़े पैमाने का कारख़ाना 1907 में झारखण्ड राज्य में सुवर्णरेखा नदी की घाटी में साकची नामक स्थान पर जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित किया गया गया था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत इस पर काफ़ी ध्यान दिया गया और वर्तमान में 7 कारखानों द्वारा लौह इस्पात का उत्पादन किया जा रहा है।
TISCO : Tata Iron & Steel Company limited, Jamshedpur) भारत का पहला सबसे बड़ा कारखाना जहां भारत का 20% इस्पात निर्मित होता हैं। इस उद्योग को बोकरो, जमशेदपुर, उड़ीसा से कोयला व लोहा प्राप्त होता हैं।
देश में सबसे पहला बड़े पैमाने का कारखाना 1907 ईस्वी में तत्कालीन बिहार राज्य की में स्वर्ण रेखा नदी की घाटी में साकची नामक स्थान पर जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित किया गया था।
स्वतंत्रता के पूर्व स्थापित लोहा इस्पात कारखाना
भारतीय लोहा इस्पात कंपनी -
इसकी स्थापना 1918 ई. में पश्चिम बंगाल की दामोदर नदी घाटी में हीरापुर (बाद में इसे बर्नपुर कहा गया) नामक स्थान पर की गई थी।यहां 1922 ई. से उत्पादन शुरू हुआ आगे चलकर कुल्टी, बर्नपुर तथा हीरापुर स्थित संयंत्रों को इसमें मिला दिया गया।
मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स -
1923 ईस्वी में मैसूर राज्य (वर्तमान कर्नाटक) के भद्रावती नामक स्थान पर स्थापित की गई थी इसका वर्तमान नाम विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड है।
स्टील कॉरपोरेशन ऑफ बंगाल -
इसकी स्थापना 1937 बर्नपुर (पश्चिम बंगाल) में की गई थी।बाद में 1953 ई. में इसे भारतीय लौह-इस्पात कंपनी में मिला दिया गया था।
स्वतंत्रता के पश्चात स्थापित लौह इस्पात कारखाना -
दूसरी पंचवर्षीय योजना काल 1956-61 में स्थापित कारखाना
भिलाई इस्पात संयंत्र
इसकी स्थापना 1955 ई. में तत्कालीन मध्य प्रदेश के भिलाई (दुर्ग जिला, छत्तीसगढ़) में पूर्व सोवियत संघ की सहायता से की गई थी।हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड, दुर्गापुर
इसकी स्थापना 1956 ईस्वी. में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर नामक स्थान पर ब्रिटेन की सहायता से की गई थी।तृतीय पंचवर्षीय योजना काल में स्थापित कारखाना
बोकारो स्टील प्लांट
इसकी स्थापना 1968 में तत्कालीन बिहार राज्य (अब झारखण्ड) के बोकारो नामक स्थान पर पूर्व सोवियत संघ की सहायता से की गई थी।चौथी पंचवर्षीय योजना काल में स्थापित कारखाना
सलेम इस्पात सयंत्र: सलेम (तमिलनाडु)विशाखापत्तन इस्पात सयंत्र: विशाखापत्तन (आंध्रा प्रदेश)
विजयनगर इस्पात सयंत्र: हास्पेट वेलारी जिला (कर्नाटक)
स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (SAIL):
24 जनवरी 1973 ईस्वी.को 2000 करोड़ की पूंजी के साथ भारत इस्पात प्रधिकरण (स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया) को भिलाई, दुर्गापुर, भोकारो, राउरकेला, बर्नपुर, सलेम एंव विश्वेश्वरैया लौह इस्पात कारखाना को एक साथ मिलाकर संचालन करने की जिम्मेदारी दी गई।वर्ष 2014 में भारत चीन, जापान तथा अमेरिका के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है।
स्पंज आयरन के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है।
भारत का पहला तटवर्ती इस्पात कारखाना विशाखापट्नम (आंध्रा) में लगाया गया।
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Note:- sscwill.in वेबसाइट में उपयोग किए गए मैप वास्तविक मैप से अलग हो सकते हैं। मैप्स को विद्यार्थियों की सुविधा के लिए सरल बनाया गया है।
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