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राजस्थान के दुर्ग और किले - Rajasthan Ke Pramukh Durg or Kile
राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक राणा कुम्भा को माना जाता है ।
मुगल काल में राजस्थान की स्थापत्य कला पर मुगल शैली का प्रभाव पडा ।
हिन्दू कारीगरों ने मुस्लिम आर्दशों के अनुरूप जो भवन बनाए, उन्हें सुप्रसिद्ध कला विशेषज्ञ फर्ग्युसन ने इंडो-सारसेनिक शैली की संज्ञा दी है ।
जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह (प्रथम) को हिन्दुषत् कहा जाता था क्योंकि उनकी रूचि स्थापत्य कला में थी ।
महाराणा कुम्भा स्वयं शिल्पशास्त्री मंडन द्वारा वास्तुकला पर रचित साहित्य से प्रभावित था ।
मुगल काल में राजस्थान की स्थापत्य कला पर मुगल शैली का प्रभाव पडा ।
हिन्दू कारीगरों ने मुस्लिम आर्दशों के अनुरूप जो भवन बनाए, उन्हें सुप्रसिद्ध कला विशेषज्ञ फर्ग्युसन ने इंडो-सारसेनिक शैली की संज्ञा दी है ।
जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह (प्रथम) को हिन्दुषत् कहा जाता था क्योंकि उनकी रूचि स्थापत्य कला में थी ।
महाराणा कुम्भा स्वयं शिल्पशास्त्री मंडन द्वारा वास्तुकला पर रचित साहित्य से प्रभावित था ।
15वीं शताब्दी में मेवाड़ के शिल्पी मंडन ने पाँच ग्रन्थ लिखें , जो निम्नलिखित थे
प्रसाद मंडन - इसमें देवालय निर्माण के निर्देश दिये गये है ।
रूपावतार मंडन - इसमें मूर्तियों के निर्माण सम्बन्धी निर्देश दिये गये है ।
रूप मंडन - इसमें भी मूर्ति निर्माण सम्बन्धी सामग्री दी हुई है ।
गृह मंडन - इसमें सामान्य व्यक्तियों के गृह, कुआँ, बावडी, तालाब महल आदि के निर्माण सम्बन्धी सामग्री दी हुई है ।
वास्तुकार मंडन - इसमें विविध तत्वों से सम्बन्धित वर्णन है ।
मंडन के निर्देशन में ही चित्तौड़ के कीर्ति स्तम्भ का निर्माण किया गया ।
शुक्र नीति में राजस्थान के दुर्गों का 9 तरह से वर्गीकरण किया गया जो निम्नलिखित प्रकार से है-
उदाहरण - रणथम्भीर दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग ।
उदाहरण - जैसलमेर, बीकानेर व नागौर के दुर्ग ।
उदाहरण - गागरोण (झालावाड), भैंसरोड़गढ़ दुर्ग (चित्तोंड़गढ़) ।
उदाहरण - कुम्भलगढ़, मांडलगढ़ (भीलवाडा), तारागढ़ (अजमेर), जयगढ़, नाहरगढ़ (जयपुर) , अचलगढ (सिरोही), मेहरानगढ (जोधपुर) ।
जैसे सिवाना दुर्ग, त्रिभुवनगढ़ दुर्ग रणथम्भौर दुर्ग ।
जैसे लोहागढ़ दुर्ग, भरतपुर ।
जैसे - चित्तोड़गढ़, कुम्भलगढ़ दुर्ग ।
महाराणा कुंम्भा ने लगभग 32 दुर्गो का निर्माण करवाया ।
बीकानेर का जूनागढ़, कोटा का इन्द्रगढ़ जयपुर का आमेर दुर्ग इंडो सार्सेनिक शैली में बने हुए है ।
किलों की दीवारों पर हमला करने के लिए रेत आदि से बना ऊँचा चबूतरा पाशीब कहलाता हैं ।
किलों में चमड़े से ढका मोटा रास्ता साबात कहलाता है ।
राजस्थान में गागरोण और भैंसरोड़गढ़ को जल दुर्गों की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है ।
यह दुर्ग 'गिरि दुर्ग' व 'वन दुर्ग' की श्रेणी में आता है।
इतिहासकार हीराचंद ओझा के अनुसार रणथंभौर का किला अण्डाकृति वाले एक ऊँचे पहाड़ पर स्थित है।
इसके चारों ओर की पहाड़ियों को किले की रक्षार्थ किले की दीवार कहा जाता है।
रणथंभौर दुर्ग अंडाकार ढाँचे में सात पहाड़ियों के मध्य स्थित है।
इसका निर्माण 8वीं शताब्दी के लगभग अजमेर के चौहान शासक राजा जयंत द्वारा कराया गया।
रणथंभौर दुर्ग का मुख्य प्रवेशद्वार नौलखा दरवाजा है।
इस लेख के अनुसार इस दरवाजे का जीर्णोद्धार जयपुर के महाराजा जगतसिंह ने करवाया था
प्रसाद मंडन - इसमें देवालय निर्माण के निर्देश दिये गये है ।
रूपावतार मंडन - इसमें मूर्तियों के निर्माण सम्बन्धी निर्देश दिये गये है ।
रूप मंडन - इसमें भी मूर्ति निर्माण सम्बन्धी सामग्री दी हुई है ।
गृह मंडन - इसमें सामान्य व्यक्तियों के गृह, कुआँ, बावडी, तालाब महल आदि के निर्माण सम्बन्धी सामग्री दी हुई है ।
वास्तुकार मंडन - इसमें विविध तत्वों से सम्बन्धित वर्णन है ।
मंडन के निर्देशन में ही चित्तौड़ के कीर्ति स्तम्भ का निर्माण किया गया ।
शुक्र नीति में राजस्थान के दुर्गों का 9 तरह से वर्गीकरण किया गया जो निम्नलिखित प्रकार से है-
एरन दुर्ग
यह दुर्ग खाई, काँटों तथा कठोर पत्थरों से निर्मित होता हैं ।उदाहरण - रणथम्भीर दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग ।
धान्वन दुर्ग
ये दुर्ग चारों ओर रेत के ऊँचे टीलों से घिरे होते है ।उदाहरण - जैसलमेर, बीकानेर व नागौर के दुर्ग ।
औदक दुर्ग (जल दुर्ग)
ये दुर्ग चारों ओर पानी से घिरे होते है ।उदाहरण - गागरोण (झालावाड), भैंसरोड़गढ़ दुर्ग (चित्तोंड़गढ़) ।
गिरि दुर्ग
ये पर्वत एकांत में किसी पहाडी पर स्थित होता है तथा इसमे जल संचय का अच्छा प्रबंध होता है ।उदाहरण - कुम्भलगढ़, मांडलगढ़ (भीलवाडा), तारागढ़ (अजमेर), जयगढ़, नाहरगढ़ (जयपुर) , अचलगढ (सिरोही), मेहरानगढ (जोधपुर) ।
सैन्य दूर्ग
जो व्यूह रचना में चतुर वीरों से व्याप्त होने से अभेद्य हो ये दुर्ग सर्वश्रेष्ठ समझे जाते है ।सहाय दुर्ग
जिसमें वीर और सदा साथ देने वाले बंधुजन रहते हो ।वन दुर्ग
जो चारों और वनों से ढका हुआ हो और कांटेदार वृक्ष हो ।जैसे सिवाना दुर्ग, त्रिभुवनगढ़ दुर्ग रणथम्भौर दुर्ग ।
पारिख दुर्ग
वे दुर्ग जिनके चारों और बहुत बडी खाई हो ।जैसे लोहागढ़ दुर्ग, भरतपुर ।
पारिध दुर्ग
जिसके चारों ओर ईट, पत्थर तथा मिट्टी से बनी बडी-बडी दीवारों का सुदृढ परकोटा होजैसे - चित्तोड़गढ़, कुम्भलगढ़ दुर्ग ।
महाराणा कुंम्भा ने लगभग 32 दुर्गो का निर्माण करवाया ।
बीकानेर का जूनागढ़, कोटा का इन्द्रगढ़ जयपुर का आमेर दुर्ग इंडो सार्सेनिक शैली में बने हुए है ।
किलों की दीवारों पर हमला करने के लिए रेत आदि से बना ऊँचा चबूतरा पाशीब कहलाता हैं ।
किलों में चमड़े से ढका मोटा रास्ता साबात कहलाता है ।
राजस्थान में गागरोण और भैंसरोड़गढ़ को जल दुर्गों की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है ।
राजस्थान के दुर्गो पर हुए आक्रमण
रणथंभौर दुर्ग
रणथंभौर दुर्ग का वास्तविक नाम 'रंतःपुर' है अर्थात् 'रण की घाटी में स्थित नगर।'यह दुर्ग 'गिरि दुर्ग' व 'वन दुर्ग' की श्रेणी में आता है।
इतिहासकार हीराचंद ओझा के अनुसार रणथंभौर का किला अण्डाकृति वाले एक ऊँचे पहाड़ पर स्थित है।
इसके चारों ओर की पहाड़ियों को किले की रक्षार्थ किले की दीवार कहा जाता है।
रणथंभौर दुर्ग अंडाकार ढाँचे में सात पहाड़ियों के मध्य स्थित है।
इसका निर्माण 8वीं शताब्दी के लगभग अजमेर के चौहान शासक राजा जयंत द्वारा कराया गया।
रणथंभौर दुर्ग का मुख्य प्रवेशद्वार नौलखा दरवाजा है।
इस लेख के अनुसार इस दरवाजे का जीर्णोद्धार जयपुर के महाराजा जगतसिंह ने करवाया था
रणथंभौर दुर्ग में तराइन के द्वितीय युद्ध 1192 ई. के पश्चात् पृथ्वीराज तृतीय के पुत्र गोविंदराज ने चौहान वंश की नींव रखी थी।
इस चौहान वंश का सबसे वीर व पराक्रमी शासक हम्मीर देव चौहान था।
यह दुर्ग चारों ओर पहाड़ियों से घिरा है, जो इसकी प्राकृतिक दीवारों का काम करती है जिसे अबुल फजल ने देखकर कहा, कि यह दुर्ग पहाड़ी प्रदेश के बीच में है इसीलिए लोग कहते हैं कि "और दर्ग नंगे हैं परंतु यह दुर्ग बख्तरबंद है।"
इस दुर्ग को 'दुर्गाधिराज', 'हम्मीर की आन-बान का प्रतीक') आदि नामों से भी जाना जाता है।
नयनचंद्र सूरी कृत 'हम्मीर महाकाव्य', जोधराज कृत 'हम्मीर रासो', चंद्रशेखर कृत 'हम्मीर हठ' तथा गोडऊ व्यास कत हम्मीरायण' आदि ग्रंथों से हम्मीर के व्यक्तित्व की जानकारी मिलती है।
रणथंभौर दुर्ग दिल्ली, मालवा एवं मेवाड़ से निकटता होने के कारण इस दुर्ग पर बार-बार आक्रमण होते रहे थे।
रणथंभौर दुर्ग पर सर्वप्रथम कुतुबुद्दीन ऐबक ने आक्रमण किया।
1291-92 ई. में सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने रणथंभौर दुर्ग पर दो बार आक्रमण किया परंतु उसने दुर्ग की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था देखकर यह कहते हुए कि "ऐसे 10 किलों को तो मैं मुसलमानों के मूंछ के एक बाल के बराबर भी नहीं समझता।" वापस चला गया।
रणथंभौर दर्ग में स्थित द्वार
नौलखा दरवाजा-रणथंभौर दुर्ग का मुख्य प्रवेशद्वार नौलखा दरवाजा है जिस पर एक लेख खुदा हुआ है।
इस लेख के अनुसार इस दरवाजे का जीर्णोद्धार जयपुर के महाराजा जगतसिंह ने करवाया था।
तोरण दरवाजा-नौलखा दरवाजे के बाद एक तिकोणी (तीन दरवाजों का समूह) दरवाजा आता है जिसे चौहान शासकों के काल में 'तोरण द्वार', मुस्लिम शासकों के काल में 'अंधेरी दरवाजा' और जयपुर के शासकों द्वारा 'त्रिपोलिया दरवाजा' कहा जाता था।
हाथीपोल, गणेशपोल व सूरजपोल इस दुर्ग के अन्य प्रमुख प्रवेश द्वार हैं।
खंडार का किला
सवाई माधोपुर से लगभग 40 किमी. पूर्व में स्थित खंडार का किला रणथंभौर के सहायक दुर्ग व उसके पृष्ठ रक्षक के रूप में विख्यात है।खंडार के किले का निर्माण रणथंभौर के चौहानवंशीय शासकों द्वारा आठवीं-नवीं शताब्दी ई. के आस-पास करवाया गया। खंडार के किले में गिरि दुर्ग व वन दर्ग दोनों के गुण विद्यमान हैं, जिसके पूर्व में बनास व पश्चिम में गालंडी नदियाँ बहती हैं।
इस दुर्ग में एक प्राचीन जैन मंदिर है जहाँ महावीर स्वामी की पदमासन मुद्रा में तथा पार्श्वनाथ की आदमकद व खडी प्रतिमा है।
इस दुर्ग में स्थित अष्ट धातु से निर्मित शारदा तोप अपनी मारक क्षमता के लिए प्रसिद्ध थी।
11 जलाई, 1301 ई. तक यह दुर्ग चौहानों के अधीन रहा उसके बाद अलाउद्दीन खिलजी के अधिकार में आ गया।
जोधपुर दुर्ग /मेहरानगढ़
मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण जोधपुर के राव जोधा' ने विक्रम संवत् 1515 की ज्येष्ठ सुदी 11 शनिवार (13 मई, 1459 ई.) में करवाया।
इस दुर्ग में नींव का प्रथम पत्थर 'रिद्धि बाई' (करणी माता) ने रखा।
यह दुर्ग जिस पहाड़ी पर बना है वहाँ 'चिड़ियानाथ' नामक योगी तपस्या करता था, अत: वह पहाड़ी 'चिड़िया ट्रॅक' कहलाने लगी तथा इस पर बना दुर्ग 'चिड़िया ट्रॅक दुर्ग' कहलाने लगा।
जोधपुर दुर्ग 'मयूर की आकृति' में बना हुआ है अत: इसे 'मयूरध्वजगढ़' (मोरध्वजगढ़) भी कहते हैं ।
जोधपुर दुर्ग को गढ़ चिंतामणि, सूर्यगढ़ तथा कागमुखी आदि नामों से भी जाना जाता है।
जोधपुर दुर्ग की नींव में 'राजिया भाभी' को जिंदा गाढा गया।
उस स्थान के ऊपर आज खजाना तथा नक्कारखाने भवन निर्मित है।
मण्डौर का किला
मण्डौर दुर्ग का निर्माण किसने व कब करवाया इसकी जानकारी का आभाव है।यह दुर्ग भूकंप के झटके से नष्ट हो गया था।
यह दुर्ग बौद्ध शैली से बना हुआ है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण मौर्य वंश के राजा चित्रांग ने करवाया।इस दुर्ग की ऊंचाई 616 मीटर है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे विशाल दुर्ग है अपनी विशालता के कारण चितौड़गढ़ दुर्ग को महा दुर्ग भी कहा जाता है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग को राजस्थान का गौरव भी कहा जाता है।
यह दुर्ग गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है।
यह दुर्ग दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाले मार्ग पर स्थित होने के कारण इसे मालवा का प्रवेश द्वार या राजस्थान का दक्षिणी प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजस्थान का सबसे बड़ा आवासीय किला है इस दुर्ग का आकार वहेल मछली के समान है यह दुर्ग राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जिसमें खेती की जाती है इस दुर्ग पर पहला आक्रमण अफगानिस्तान के सूबेदार मामू ने किया।
गुहिल वंश के शासक बप्पा रावल ने मौर्य वंश के शासक मान मोरी को पराजित कर 734 ई में चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।
12 वीं शताब्दी में चित्तौड़ पर पुन: गुहिलों का अधिकार हुआ।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में सात प्रमुख प्रवेश द्वार हैं-
पाडनपोल, पाटवनपोल, भैंरवपोल, गनेशपोल, जोडलापोल, लक्ष्मणपोल व रामपोल।
भटनेर दुर्ग
इस दुर्ग का निर्माण हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के मुहाने पर भाटी राजा भूपत ने तीसरी शताब्दी (288 ई.) में करवाया था।
इस दुर्ग का मुख्य शिल्पी केकेया था।
इस दुर्ग का पुन: निर्माण 12वीं शताब्दी में 'महारावल शालिवाहन' के वंशज राजा अभयराव भाटी द्वारा करवाया गया। यह राजस्थान का सबसे प्राचीन दुर्ग है।
इसी दुर्ग पर सर्वाधिक विदेशी आक्रमण हुए।
भाटीयों के द्वारा बना होने के कारण इसका नाम भटनेर दुर्ग पड़ा।
बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह द्वारा 1805 ई. में मंगलवार के दिन दुर्ग हस्तगत किये जाने के कारण भटनेर का नाम हनुमानगढ़ कर दिया गया।
इस दुर्ग को उत्तरी सीमा का प्रहरी कहा जाता था क्योंकि मध्य एशिया से होने वाले आक्रमण प्रायः इसी ओर से होते थे।
यह दुर्ग ‘धान्वन दुर्ग' व 'जल दुर्ग' की श्रेणी में आता है।
भैंसरोडगढ़ दुर्ग
इस दुर्ग का निर्माण चित्तौड़गढ़ जिले में चंबल और बामणी नदियों के संगम स्थल पर भेंसा शाह नामक व्यापारी द्वारा करवाया गया।यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जिसका निर्माण व्यापारियों द्वारा करवाया गया है।
यह दुर्ग जल दुर्ग की श्रेणी में आता है।
डोड़ा के परमारों ने इस दुर्ग का जीर्णो्द्वारा करवाया read more....
जैसलमेर दुर्ग
जैसलमेर दुर्ग की निर्माण विक्रम संवत 1212 में रावल जैसल ने रखी।रावल जैसल दुर्ग का थोड़ा ही भाग बनवाया था कि उसकी मृत्यु हो गई बाद में उसके पुत्र शालीवाहन द्वितीय ने जैसलमेर दुर्ग का अधिकतर निर्माण कार्य करवाया।
यह दुर्ग धान्वन श्रेणी में आता है।
यह दुर्ग गोरहरा नामक पहाड़ी पर बना हुआ है।
यह दुर्ग राजस्थान का चितौड़गढ़ के बाद दूसरा सबसे बड़ा आवासीय किला है।
अक्ष्य पोल दुर्ग का प्रमुख प्रवेश द्वार है।
जैसलमेर दुर्ग का पहला साका सन् 1299 में हुआ।
जैसलमेर दुर्ग का निर्माण रावल जैसल ने करवाया था इसलिए यह दुर्ग जैसलमेर दुर्ग कहलाता है।
यह दुर्ग गौर हरा नामक पहाड़ी पर बना हुआ है इसलिए इस दुर्ग को गौरहरागढ़ दुर्ग भी कहा जाता है।
यह दुर्ग गौर हरा नामक पहाड़ी पर बना हुआ है इसलिए इस दुर्ग को गौरहरागढ़ दुर्ग भी कहा जाता है।
यह दुर्ग सदा से ही उत्तरी सीमा का प्रहरी रहा है अंत इसे उत्तर भड़ किंवाड़ के नाम से भी जाना जाता है।
त्रिकूट नामक पहाड़ी पर पीले बलुआ पत्थरों से निर्मित इस गढ़ पर जब सूरज की किरने पड़ती हैं तो स्वर्णिम मरीचिका सा दृश्य प्रस्तुत होता है शायद इसी कारण इसे सोनगिरी/ सोनारगढ़/ स्वर्ण गिरी आदि नामों से जाना जाता है।
लोक काव्य में इसे जो सारंगढ़ का आ गया है अबुल फजल ने इस दुर्ग को देकर कहा कि ऐसा दुर्ग जहां पहुंचने के लिए पत्थर की टांग चाहिए इसलिए इस दुर्ग को दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे रेत के समुंदर में लंगर लिए हुए जहाज के समान खड़ा है।
यह दुर्ग 1500 X 750 वर्ग फीट के घेरे में निर्मित है तथा ढाई सौ फीट ऊंची त्रिकोणी पहाड़ी पर बना है इसी कारण इसे त्रिकूट गढ़वी कहते हैं ऐसे राजस्थान का अंडमान रेगिस्तान का गुलाब तथा गलियों का दुर्ग आदि नामों से जाना जाता है।
यह दुर्ग राजस्थान का चित्तौड़गढ़ के बाद दूसरा बड़ा लिविंग फोर्ट है दुर्ग के चारों और किले की सुरक्षा और सुंदरता के लिए घाघरानुमा परकोटा पथरों से बनाया गया। इस दोहरे परकोटे को कमरकोट या पाड़ा भी कहते हैं।
इस दुर्ग का निर्माण केवल पत्रों से किया गया, जिसमें चूने का प्रयोग न करके उसकी जगह कली व लोहे का प्रयोग किया गया था।
यह किला त्रिकुटाकृति का है जिसमें सर्वाधिक 99 बुर्ज है सत्यजीत रे ने इस दुर्ग पर सोनारकिला नामक फिल्म बनाई।
जैसलमेर दुर्ग को जनवरी 2005 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है इस दुर्ग पर 2009 में ₹5 का डाक टिकट जारी किया गया तथा 2009 में आए भूकंप से इस में दरारें पड़ गई हैं। read more...
गागरोन दुर्ग
गागरोन दुर्ग का निर्माण 7 8 वीं शताब्दी में डोड राजपूत राजा बिजल देव द्वारा करवाया गया।यह दुर्ग आहू और काली सिंध नदी के संगम पर स्थित मुकदरा नामक पहाड़ी पर बनवाया गया।
यह दुर्ग जल दुर्ग की श्रेणी में आता है।
यह भारत का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जो बिना नीम के एक कठोर चट्टान पर बना हुआ है।
गागरोन दुर्ग का 100 वर्षीय पंचांग राष्ट्र भर में प्रसिद्ध है।
गागरोन दुर्ग विद्यांचल पर्वत श्रेणी पर स्थित है।
गागरोन दुर्ग का पहला साका 1423 ई. में तथा दूसरा साका 1444 ई. में हुआ।
शेरगढ़ (कोशवर्द्धन)
इस दुर्ग के निर्माण संबंधी सबसे पुराना साक्ष्य इस दुर्ग के एक प्रवेश द्वार (बरखेड़ी दरवाजा) पर उत्कीर्ण विक्रम संवत् माघ सुदी 6 (15 जनवरी, 791 ई.) का एक शिलालेख है।
जिसके अनुसार यहाँ पर चार नागवंशीय शासकों (बिंदुनाग, पदम्नाग, सर्वनाग और देवदत्त) ने राज किया और जिस पर्वत पर यह दर्ग बना है उसका नाम कोशवर्द्धन था।
इस दुर्ग का निर्माण नागवंशीय शासकों ने ही करवाया था और इस पर्वत के नाम पर ही इस दुर्ग का नाम कोशवर्द्धन रखा गया।
जनश्रुति के अनुसार यह दुर्ग राजकोष में निरंतर वृद्धि करने वाला था इसी के कारण इसका नाम कोशवर्द्धन (प्राचीन नाम) रखा गया।
यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जहाँ पर सर्वनाग व उसकी रानी श्री देवी ( महोदया) के पुत्र देवदत्त द्वारा एक बौद्ध विहार और मठ बनवाया।
यह दुर्ग बारां जिले में परवन नदी के किनारे पर स्थित 'जल दुर्ग व 'वन दुर्ग' की श्रेणी में आता है।
मनोहर थाना का दुर्ग
यह दुर्ग झालावाड़ जिले में स्थित है।यह परवन और कालिखोह नदियों से घिरा हुआ है।
यह दुर्ग जल दुर्ग की श्रेणी में आता है।
इससे दुर्ग में भीलों की आराध्य देवी विशवंती का प्रसिद्ध मंदिर है।
जालौर दुर्ग
यह दुर्ग गिरी दुर्ग तथा वन दुर्ग की श्रेणी में आता है।इस दुर्ग का निर्माण लूणी नदी की सहायक नदी सुकड़ी नदी के बाएं तरफ स्थित सोनगिरी व कन काचल पहाड़ी पर करवाया गया।
यह दुर्ग सोनगिरी, सुवर्णागिरी, सोनलगढ़ और कंचनगिरि आदि नामों से जाना जाता है।
इतिहासकार डॉ दशरथ के अनुसार जालोर दुर्ग का निर्माण प्रतिहार राजा नागभट्ट प्रथम द्वारा करवाया गया।
जबकि इतिहासकार डॉ गौरीशंकर के अनुसार परमारो ने इसका निर्माण करवाया।
सिवाना का किला
यह दुर्ग गिरी दुर्ग और वन दुर्ग की श्रेणी में आता है।इस ग्रुप का निर्माण बाड़मेर जिले की 56 की पहाड़ियों की हल्देश्वर पहाड़ी पर 10 वीं शताब्दी में पंवार राजा भोज की पुत्र वीर नारायण पंवार ने करवाया।
सिवाना दुर्ग का पहला शाखा 1310 ई. में हुआ।
इस दुर्ग का दूसरा साका सन 1882 ई. में हुआ।
किलोणगढ़ / बाड़मेर दुर्ग
इस दुर्ग का निर्माण बाड़मेर के राव भीमोजी ने करवाया।
यह दुर्ग सुजेर भाखरी नामक पहाड़ी पर करवाया गया।
जूना का दुर्ग
इस दुर्ग निर्माण परमार राजा धरणीवराह के पुत्र बाहड़ बागभट्ट ने करवाया।
इसको प्राचीन काल में बाहड़मेरु, ब्रहागिरि, जूना बाड़मेर के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान समय यहां सिर्फ दुर्ग के अवशेष बचे है।
इस निर्माण 1002 ई. में हुआ था।
कोटड़ा का किला
कोटड़ा के किले का निर्माण बाड़मेर जिले की शिव तहसील के कोटड़ा गाँव की छोटी-सी भाखरी नामक पहाड़ी पर किराडू के परमार शासकों द्वारा करवाया गया।
यह स्थान पहले जैन संप्रदाय की विशाल नगरी थी।
इस दुर्ग में एक झरोखा है, जिसे 'मेड़ी' कहते हैं, जिसे मारवाड़ के खजांची 'गोरधन खींची' ने बनवाया था।
कोटड़ा दुर्ग का आकार जैसलमेर के किले के समान है।
सरगला नामक पानी का कुआँ इसी दुर्ग में है।
हापाकोट
इस दुर्ग का निर्माण जालौर के कान्हड़देव के बड़े भाई सालिम सिंह के द्वितीय पुत्र हापा ने चोहटन (बाड़मेर) कस्बे की पहाड़ी पर करवाया।
उसी के नाम पर उसे हापाकोट या हापागढ़ कहते हैं।
भरतपुर/लोहागढ़ दुर्ग
भरतपुर दुर्ग के निर्माण की नींव 19 फरवरी, 1733 ई. में जाट राजा सूरजमल ने रखी।
यह राजस्थान का सबसे नवीन व सर्वाधिक नीचाई पर स्थित दुर्ग है
भरतपुर दुर्ग पारिख व स्थल दुर्ग (भूमि दुर्ग) की श्रेणी में आता है।
इस दुर्ग को मिट्टी का किला व अभेद्य दुर्ग भी कहते हैं।
यह दुर्ग राजस्थान की पूर्वी सीमा पर स्थित मजबूत किला है
इसे पूर्वी सीमांत का प्रहरी किला भी कहते हैं।
अंग्रेजों से लोहा लेने के कारण यह लोहागढ़ कहलाया।
दुर्ग निर्माण की परंपरा में लोहागढ़ अंतिम दुर्ग है।
डीग का किला
इस किले का निर्माण सन् 1730 ई. में बदनसिंह ने करवाया।
यह पारिख दुर्ग की श्रेणी का दुर्ग है अत: इस दुर्ग के चारों ओर खाई बनी हुई हैं।
इस दुर्ग के मध्य में 'महाराजा सूरजमल' का महल है।
सूरजमल महल के पीछे उनके भाई सुल्तानसिंह की छतरी बनी हुई है।
सुल्तान सिंह की छतरी के पास एक अन्य कब्र है जिसे दिल्ली के वजीर मिर्ज़ा सफ़ी की समाधि बताया जाता है।
यह 'अऊ' नामक स्थान पर 3 सितंबर, 1783 ई. को लड़ाई के दौरान मारा गया।
इस किले के पास जलमहलों का निर्माण करवाया गया जो पानी के फव्वारों के लिए प्रसिद्ध है। इ
सी कारण डीग को 'जलमहलों की नगरी' भी कहा जाता है।
बयाना का किला
बयाना का दुर्ग वर्तमान में भरतपुर जिले में स्थित है।
कृष्ण भगवान की 77वीं पीढ़ी में धर्मपाल नामक राजा हुए।
इन्हीं धर्मपाल की 11वीं पीढ़ी में उत्पन्न हुए विजयपाल ने 1040 ई. में मानी (दमदमा) नामक पहाड़ी पर इस दुर्ग का निर्माण करवाया।
तवनगढ़ (त्रिभुवनगढ़)
इस दुर्ग का निर्माण बयाना (भरतपुर) में 11वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विजयपाल के बड़े पुत्र तहणपाल (तवनपाल) या त्रिभुवनपाल ने करवाया।
अपने निर्माता के नाम पर यह दुर्ग‘तवनगढ़/ त्रिभुवनगढ़' तथा किले वाली पहाड़ी 'त्रिभुवनगिरी' कहलाती है।
मुस्लिम आधिपत्य के बाद इसका नाम इस्लामाबाद कर दिया गया।
त्रिभुवनपाल ने ही यहाँ पर सागर नामक जलाशय बनवाया।
बैर का किला
बैर के किले का निर्माण महाराजा बदनसिंह ने 1726 ई. में भरतपुर में करवाया।
बदनसिंह ने इस किले को अपने पुत्र प्रतापसिंह को दे दिया जिसने इस किले के चारों ओर प्रताप नहर बनाई।
आबू दुर्ग(अचलगढ़)
प्राचीन शिलालेखों और साहित्यिक ग्रंथों में आबू पर्वत को 'अर्बुदगिरि' अथवा 'अर्बुदाचल' कहा गया है।
इस अर्बुदगिरि पर स्थित पुराने किले का निर्माण परमार शासकों द्वारा करवाया गया।
सन् 1452 ई. में महाराणा कुंभा ने इस प्राचीन दुर्ग के भग्नावशेषों पर एक नए दुर्ग का निर्माण करवाया।
सिरोही जिले में स्थित आबू दुर्ग में आबू पर्वत के अधिष्ठाता देव अचलेश्वर महादेव' का मंदिर है अत: इस दर्ग को अचलगढ़ कहते हैं।
'अचलेश्वर' परमार वंशीय शासकों के कुल देवता माने जाते हैं।
इस मंदिर में शिवलिंग न होकर केवल एक गड्ढ़ा है, जिसे 'ब्रह्मखड्ढ़' कहा जाता है।
बूंदी का किला
इस दुर्ग का निर्माण राव बरसिंह ने करवाया था।
इस 1352 ई. में मेवाड़, मालवा और गुजरात के शासकों के हमले से बचने के लिए करवाया गया।
बूंदी का किला हाड़ौती अंचल का सबसे प्राचीन दुर्ग है।
कुंभलगढ़ का किला
इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के दूसरे पुत्र संप्रति ने करवाया था।
यह दुर्ग गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है।
इसी दुर्ग में उदय सिंह का 1573 में राज्यभिषेक हुआ था।
केहरीगढ़
यह दुर्ग अजमेर जिले के किशनगढ़ कस्बे में गूंदोलाव तालाब के निकट स्थित है।
इस दुर्ग के आंतरिक भाग को जीवरक्खा कहते हैं।
वर्तमान में यह दुर्ग हैरिटेज होटल है।
अकबर का किला
इस दुर्ग का निर्माण मुगल बादशाह अकबर ने हिज़री संवत् 978 (1570 ई.) में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु करवाया।
यहाँ पर अकबर अपना राजकोष रखता था।
अत: यह दुर्ग अकबर का दौलतखाना के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान का यह एकमात्र दुर्ग है जो पूर्णतया मुस्लिम दुर्ग निर्माण पद्धति से बना है ।
यह दुर्ग 'स्थल/भूमि दुर्ग' की श्रेणी में आता है।
टॉडगढ़
इस दुर्ग का निर्माण कर्नल जेम्स टॉड ने रावली टॉडगढ़ अभयारण्य (अजमेर) में करवाया।
उसी के नाम पर इसे टॉडगढ़ कहते हैं।
यह दुर्ग 'गिरि दुर्ग' की श्रेणी में आता है।
यह स्थान पहले बोरासवाड़ा कहलाता था।
इस दुर्ग में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी 'गोपाल सिंह खरवा व विजयसिंह पथिक' को नज़रबंद रखा गया था।
आमेर का किला
आमेर प्राचीन काल में एक नगर था, जो अंबरीश ऋषि की तपोस्थली था अत: उसी के नाम पर ये नगर प्राचीन काल में आंबेर, अंबिकापुर, अंबर, अंबरीशपुर, अंबावती आदि नामों से विख्यात था।
आमेर के राजप्रसादों (महलों) का निर्माण कार्य राजा मानसिंह ने शुरू करवाया था जो राजा मिर्जा जयसिंह के काल में पूर्ण हुआ।
1599 ई. में आमेर में बना होने के कारण यह किला आमेर का किला कहलाया।
यह दुर्ग गिरि दुर्ग की श्रेणी में आता है।
नाहरगढ़
नाहरगढ़ का निर्माण कछवाहा वंश के महाराजा सवाई जयसिंह ने 1734 ई. में मराठाओं के आक्रमण से बचने के लिए करवाया।
उस समय इस किले के निर्माण पर साढ़े तीन लाख रुपये खर्च हुए।
इस किले में सुदर्शन कृष्ण भगवान का मंदिर है अत: इसे सुदर्शनगढ़ (सुलक्षण दुर्ग) कहते हैं जो इस दुर्ग का मूल नाम है।
कांकणवाड़ी का किला
कांकणवाड़ी का किला अलवर जिले में प्रसिद्ध सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य के मध्य सघन और बीहड़ वन में नितांत, निर्जन और सुनसान स्थान पर स्थित है, जो विस्तृत अरावली पर्वतमाला से चारों ओर से घिरा है तथा उससे रक्षित है।
कांकणवाड़ी के किले की निर्माण तिथि और इसके निर्माता के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है।
ज्ञात इतिहास के अनुसार इस सुप्रसिद्ध दुर्ग का निर्माण आंबेर (जयपुर) के कछवाहा वंशीय नरेश महाराजा सवाई जयसिंह के द्वारा कराया गया तथा कांकणवाड़ी किले का जीर्णोद्धार महाराजा सवाई प्रतापसिंह द्वारा करवाया गया।
कांकणवाड़ी का किला गिरी दुर्ग और वन दुर्ग की श्रेणी में आता है।
इस किले की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह दुर्ग दूर से दिखाई पड़ता है पर पास जाने पर पेड़ों के झुरमुट में इस तरह छिप जाता है मानों प्रकृति ने इसे अपने आंचल में छिपा लिया हो।
जनश्रुति के अनुसार कांकणवाड़ी के किले पर मुगल बादशाह औरंगजेब ने उत्तराधिकार के युद्ध में विजय पाने के उपरांत अपने पराजित भाई दाराशिकोह को कांकणवाड़ी के किले में कुछ अरसे तक कैद रखा था।
इंदौर का किला
इस दुर्ग-निर्माण निकुम्भों ने करवाया था जो दिल्ली सल्तनत की आँख की किरकिरी बना हुआ था।
यह दुर्ग अलवर में है।
नीमराणा का किला
इस दुर्ग का निर्माण 1464 ई. में चौहानों ने करवाया। यह दुर्ग पाँच मंजिला है अत: इसे पंचमहल के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में इसे एक होटल का रूप दे दिया।
अलवर का किला
जनश्रुति के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण आंबेर नरेश कांकिल देव के ज्येष्ठ पुत्र अलघुराय ने विक्रम संवत् 1106 में करवाया अत: इसे अलघराय दुर्ग भी कहते हैं।
इस दुर्ग के नीचे एक नगर बसाया जिसका नाम 'अलपुर' रखा।
वर्तमान में इस प्राचीन नगर के ध्वंसाशेष को रावण देहरा के नाम से जाना जाता है।
इस नगर का प्राचीन नाम अर्बलपुर (अरावली पहाड़ियों के मध्य में स्थित नगर) था जो बाद में अपभ्रंश होकर अलवर हो गया।
Rajasthan ke Durg Questions
Q 1.) 18 वीं सदी में मराठो ने राजस्थान के किस हिस्से पर कब्जा कर लिया था
a) अजमेर
b) ब्यावर
c) नसीराबाद
d) करौली
Answer :-a) अजमेर
Q 2.) राजस्थान के किस राज्य के शासक को महारावल कहा जाता है
a) बांसवाड़ा
b) झालावार
c) भीलवाड़ा
d) डूंगरपुर
Answer :-d) डूंगरपुर
Q 3.) चौसा का युद्ध किनके बीच लड़ा गया
a) शेरशाह सूरी हुमायूं
b) हुमायूं राणा सांगा
c) अकबर महाराणा प्रताप
d) बाबर महाराणा सांगा
Answer :-a) शेरशाह सूरी हुमायूं
Q 4.) राजपूत राजाओं के समय कौन सा धर्म अधिक लोकप्रिय हुआ
a) सिक्ख
b) इसाई
c) मुस्लिम
d) हिंदू
Answer :-d) हिंदू
Q 5.) बसंती नामक किले का निर्माण करवाया था
a)राणा सांगा
b) राणा कुंभा
c) राव जोधा
d) राव बिका
Answer :-b) राणा कुंभा
Q 6.) विश्व की सबसे बड़ी तोप जो पहियो पर रखी है का नाम है
a) जार तोप
b) जमजमा तोप
c) बोफोर्स तोप
d) जयबाण तोप
Answer :-d) जयबाण तोप
Q 7.) जैसलमेर का किला किस पत्थर से बना है वह है
a) पीला पत्थर
b) भूरा पत्थर
c) सेंड स्टोन पत्थर
d) लाल पत्थर
Answer :-c) सेंड स्टोन पत्थर
Q 8.) किस दुर्ग को सोनार दुर्ग कहा गया है
a) जोधपुर
b) जैसलमेर
c) जयपुर
d) बाड़मेर
Answer :-b) जैसलमेर
Q 9.) सिवाणा दुर्ग किस जिले में है
a) जोधपुर
b) बाड़मेर
c)जैसलमेर
d) चित्तौड़गढ़
Answer :-b) बाड़मेर
Q 10.) कुचामन दुर्ग किस जिले में स्थित है
a) नागौर
b) जालौर
c) बीकानेर
d) बाड़मेर
Answer :-a) नागौर
Q 11.) बाला किला में किस मुगल बादशाह ने एक रात गुजारी थी
a) अकबर
b) शाहजहां
c) जहांगीर
d) हुमायूं
Answer :-c) जहांगीर
Q 12.) दिल्ली के लाल किले का लाल पत्थर कहां से आया था
a) उदयपुर
b) धौलपुर
c) बांसवाड़ा
d) अजमेर
Answer :-b) धौलपुर
Q 13.) चील्ह का टोला किस दुर्ग को कहा जाता है
a) जयगढ़ दुर्ग
b) तारागढ़ दुर्ग
c) मेहरानगढ़ दुर्ग
d) आमेर गढ़ दुर्ग
Answer :-a) जयगढ़ दुर्ग
Q 14.) रणथंभोर के दुर्ग का पतन कब हुआ
a) 11 जुलाई 1301 ई
b) 15जुलाई 1313 ई
c) 11जून 1301 ई
d) 14 जून 1322 ई
Answer :-a) 11 जुलाई 1301 ई
Q 15.) कुंभलगढ़ दुर्ग की दीवार की लंबाई है
a) 45 किमी
b) 31 किमी
c) 36 किमी
d) 51 किमी
Answer :-c) 36 किमी
Q 16.) राजस्थान के किस किले के पास जैविक उद्यान स्थित है
a) तारागढ़
b) लोहागढ़
c) धान्वनगढ़
d) नाहरगढ़
Answer :-d) नाहरगढ़
Q 17.) अल्बर्ट हॉल कहां स्थित है
a) उदयपुर
b) जयपुर
c) झुंझुनू
d) सीकर
Answer :-b) जयपुर
Q 18.) उम्मेद भवन कहां स्थित है
a) जोधपुर
b) जैसलमेर
c) बाड़मेर
d) जयपुर
Answer :-a) जोधपुर
Q 19.) अढाई दिन का झोपड़ा कहां पर स्थित है
a) अलवर
b) अजमेर
c) ब्यावर
d) उदयपुर
Answer :-b) अजमेर
Q 20.) विजय स्तंभ पर किसकी मूर्ति बनी हुई है
a) शिव की
b) विष्णु की
c) ब्रह्मा की
d) राम की
Answer :-b) विष्णु की
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