इस पोस्ट में हम राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेव जी की जीवनी पढ़ेंगे।
यह पोस्ट rajasthan gk की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है।
समय-समय पर उत्कृष्ट कार्य, बलिदान, उत्सर्ग या परोपकार करने वाले महापुरुषों को 'लोक देवता' या 'पीर' कहा जाता है।
राजस्थान के पंचपीर-पाबू, हरबू, रामदेव, मांगलियामेहा। पाँचों पीर 'पधारजो, गोगाजी जेहा।
Lok Devta Baba Ramdev JiAdd caption |
राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेव जी
बाबा रामदेव का जन्म 1352 ई. (विक्रम संवत् 1409) 'उंडूकासमेर' (बाड़मेर) में भाद्रभद शुक्ल द्वितीया (बाबेरी बीज) को तँवर वंशीय राजपूत परिवार में हुआ था।
इनके पिता का नाम 'ठाकुर अजमाल', माता का नाम 'मैनादे' व बड़े भाई का इ नाम 'वीरमदेव' (बलराम का अवतार) था।
इनका विवाह अमरकोट (वर्तमान में पाकिस्तान में) के सोढ़ा दलैसिंह की पुत्री 'निहालदे/ नेतल दे' के साथ हुआ।
बाबा रामदेव मल्लीनाथ जी के समकालीन थे।
माना जाता है कि, मल्लीनाथ जी ने इन्हें पोकरण क्षेत्र जागीर में दिया।
जिसे बाबा रामदेव ने अपनी भतीजी को दहेज में देकर 'रूणेचा' (रामदेवरा) नामक नया निवास स्थान बनाया।
इन्होंने बाल्यकाल में ही पोकरण (जैसलमेर) में गौधन का नाश करने वाले 'भैरव' नामक राक्षस का वध किया।
बाबा रामदेव को सांप्रदायिक सद्भाव के लोकदेवता, रूणेचा रा धणी, पीरों का पीर, हिंदु धर्म में इन्हें 'कृष्ण का अवतार', मुस्लिम संप्रदाय में 'रामसापीर' आदि उपनामों से जाना जाता है।
रामदेवजी बालीनाथ जी के शिष्य थे, जिन्होंने कामड़िया पंथ की स्थापना की तथा कामड़ जाति के लोग रामदेव जी के प्रिय भक्त हैं।
रामदेवजी के मेले पर कामड़ जाति की महिलाएँ तेरह मजीरों के साथ 'तेरहताली नृत्य' करती हैं। रामदेवजी हिंदु धर्म के प्रबल समर्थक थे जिन्होंने हिंदु धर्म के शुद्धिकरण के लिए 'शुद्धि आंदोलन' चलाया।
" रामदेवजी के जीवन की चमत्कारी घटनाओं को 'परचा/परचे', रामदेवजी के धार्मिक स्थल पर इनकी पाँच रंग की पताका/ध्वज 'नेजा', इनका प्रमुख वाहन 'नीला घोड़ा', इनके प्रतीक चिह्न 'चरण चिह्न/पगल्या' कदंब के वृक्ष के नीचे स्थापित किए स्थान को थान', रामदेवजी के मंदिर को देवरा', रामदेवजी के प्रिय भक्त यात्री 'जातरू', रामदेवजी द्वारा शोषण के विरुद्ध चलाया गया जनजागरण अभियान 'जम्मा जागरण' एवं रामदेव जी के किए जाने वाला रात्रिजागरण 'जम्मा' कहलाता है। "
रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोक देवता थे जो कवि थे। इ
नके द्वारा रचित 'चौबिस वाणियाँ' प्रसिद्ध हैं।
इन्होंने मेघवाल जाति डाली बाई को अपनी धर्म बहन बनाया।
मेघवाल जाति के भक्त 'रिखिया' कहलाते हैं।
रामदेवजी के मंदिरों में कपड़े का घोड़ा बनाकर अर्पित किया जाता है।
इन्होंने 'रामसरोवर की पाल' (रूणेचा) में समाधि ली तथा इनकी धर्म बहन डाली बाई' ने यहाँ पर उनकी आज्ञा से एक दिन पहले जलसमाधि ली थी।
डाली बाई का मंदिर इनकी समाधि के समीप स्थित है।
रामदेवजी की वास्तविक बहन 'सुगना बाई' जिसका विवाह पुंगलगढ़ के परिहार राव किशन सिंह से हुआ।
रामदेव जी की फड़ बीकानेर व जैसलमेर में 'ब्यावले भक्तों' के द्वारा बांची जाती है।
रामदेवजी के वंशज मृतक व्यक्ति को दफनाते हैं।
रामदेवजी का मेला-रूणेचा (रामदेवरा में) प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक लगता है।
रामदेवजी के प्रमुख मंदिर
(अ) रामदेवरा (जैसलमेर)-यहाँ रामदेवजी व डाली बाई की समाधि स्थित है।
जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को मेला लगता है।
छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है।
(ब) बराठिया का मंदिर (अजमेर)-यह अजमेर जिले में 'बर' नामक स्थान पर स्थित है।
यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल एकादशी को मेला लगता है।
(स) सुरता खेड़ा (चित्तौड़गढ़)-प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल प्रथमा से तृतीया को मेला लगता है।
(द) मसूरिया (जोधपुर) (य) अधरशिला मंदिर (जोधपुर)
रामदेवजी के कार्य-कलाप
रामदेवजी के कार्य-कलापों से आश्चर्यचकित होकर मक्का से पाँच पीर परीक्षा लेने राजस्थान आए रामदेवजी ने उन्हें भोजन करने का निमंत्रण दिया किंतु पीरों ने शर्त रखी की वे अपने बर्तनों में ही भोजन कर सकते हैं और बर्तन मक्का में ही रह गए।
कहते हैं, बाबा ने पीरों को सामने बैठाकर आँखें बंद करने को कहा और अपने हाथ फैलाकर मक्का से पीरों के बर्तन लाकर तत्क्षण ही उनके सामने रख दिए ।
यह देखकर पाँचों पीरों ने कहा कि "हम तो पीर ही हैं बाबा रामदेव तो पीरों के पीर हैं।"
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