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सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
1. हड़प्पा
हड़प्पा (आधुनिक स्थल पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त में मुलतान जिला) सिन्धु घाटी सभ्यता का प्रथम स्थल है।
इसकी खोज सन् 1921 में दयाराम साहनी ने की।
2. मोहनजोदड़ो
मोहनजोदड़ो या मृतकों का टीला (आधुनिक स्थल लरकाना जिला, सिन्ध पाकिस्तान) सिन्ध नदी के तट पर सन् 1922 में मोहनजोदड़ो सिन्धु सभ्यता के दूसरे स्थल के रूप में आर. टी. बनर्जी (राखालदास बनर्जी) ने खोजा।
हड़प्पा से प्राप्त अवशेष
एक लिपिबद्ध मुहर सन् 1875 ई. में सर अलेक्जेण्डर कनिंघम के उत्खनन से प्राप्त हुई।इसके बाद निम्न अवशेष प्राप्त हुए-
1. 31 मुद्रा छापे
2. दो पहिए का ताँबा वाला रथ
3. फियाँस की मुहर
4. मिट्टी के बरतन
5.टूटे हुए मटके
6. ताँबे व काँसे की मूर्तियाँ
उपर्युक्त सभी अवशेष रावी नदी के किनारे पाकिस्तान के मुलतान जिले में प्राप्त हुए।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अवशेष
1. गढ़ी हुई पक्की ईंटों से बना एक बुर्ज2. एक विशाल स्नानागार (लम्बाई 12 मी. x चौड़ाई 7 मी. x गहराई 2.5 मी.)
3. एक अन्नागार (गोदीबाड़ा) 45-75 मी. लम्बा x 15-24 मी. चौड़ा)
4. गाड़ी और घोड़ा के टेराकोटा नमूने
5. दाड़ी युक्त पुरुष की चूने के पत्थर से बनी मूर्ति
6. एक कृत्रिम धरातल से अश्व का साक्ष्य
- उपर्युक्त अवशेष मोहनजोदड़ो में सिन्धुनदी के पूर्वी किनारे पर हड़प्पा स्थल से 483 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान के वर्तमान लरकाना जिले में पाये गये सिन्धी भाषा में मोहनजोदड़ो को 'मृतकों का टीला' कहा जाता है।
- सम्भवतः खण्डहरों के प्राप्त होने के कारण ही इसे मृतकों का टीला (Mound of the Deads) कहा जाता है।
- सिन्धुघाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का विस्तार त्रिभुजाकार में उत्तर से दक्षिण लगभग 1100 कि.मी. एवं पश्चिम से पूर्व 1600 किमी तक था।
- इस सभ्यता का विस्तार उत्तर से दक्षिण में 1100 किलोमीटर जम्मू से नर्मदा नदी तक एवं पश्चिम से पूर्व में 1600 किमी बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से उत्तर पूर्व में मेरठ या सहारनपुर तक फैला हुआ था।
1. बलुचिस्तान
2. सिन्ध
3. पंजाब
4. हरियाणा
5. राजस्थान
6. सौराष्ट्र
7. गुजरात
8. गंगाघाटी
9. काठियावाड़
- सिन्धु घाटी सभ्यता का पूरा क्षेत्रफल 12.99,600 वर्ग किलोमीटर है।
- मिन-मेसोपोटामिया की सभ्यता का विस्तार सिन्धुसभ्यता की तुलना में आधा था ।
- हड़प्पा-संस्कृति के प्रमुख स्थल आर्यों से पूर्व ही हड़प्पा-संस्कृति का आविर्भाव सिन्धुघाटी में हो चुका था।
- इसका ज्ञान हड़प्पा संस्कृति के बोध होने पर ही हुआ।
- सिन्धुघाटी सभ्यता नगरीय ही नहीं अपितु ग्राम, कस्बे, नगर एवं बड़े ग्रामों की सभ्यता थी।
- सिन्धु सभ्यता के अवशेष सबसे पहले हड़प्या एवं मोहनजोदडो में पाये गये।
- लेकिन इसके बाद इससे सम्बद्ध कई स्थल खोजे गए।
1. हड़प्पा
2. मोहनजोदड़ो
3. चन्हुदाड़ो
4. कोटदीजी
5. सुत्कगेनडोर
6.डाबरकोट
7. लोथल
8.रंगपुर
9.रोजदि
10. सुरकोटड़ा
11. मालवण
12. संघोल
13.रोपड़
14. बाड़ा
15.राखीगढ़ी
16. वणवाली
17. कालीबंगा
18. आलमगीरपुर
19. बडगाँव एवं अम्बखेड़ी
20. मीत्ताथल
हड़प्पा
- सिन्धु सभ्यता के अवशेष सबसे पहले 'हड़प्पा' में प्राप्त हुए, सन् 1875 ई. में सर कनिंघम को इस सभ्यता का ज्ञान उत्खनन से प्राप्त हुआ एवं उन्हें इस दौरान एक अज्ञात लिपिबद्ध मुहर प्राप्त हुई।
- सिन्धु सभ्यता का यह 'हड़प्पा' नामक स्थल रावी नदी से हड़प्पा में पूर्ण साम्यता है।
- हड़प्पा पर तैयार की गई सर अलेक्जेण्डर कनिंघम की रिपोर्ट के अनुसार 'हड़प्पा' के खण्डहर एवं टीले निम्नवत् वर्गीकत थे।
जिनका वर्गीकरण स्वयं कनिंघम ने किया था-
- टीला 'ए'
- टीला 'बी'
- टीला 'सी'
- टीला 'डी'
- टीला ई
- टीला 'एफ'
- थाना टीला
सर अलेक्जेण्डर कनिंघम के अनुसार हड़प्पा क्षेत्र 5 किलोमीटर तक फैला हुआ था।
हड़प्पा में सन् 1928 एवं 1933 में माधोस्वरूप वत्स ने उत्खनन किया एवं दो टीलों को पाया।
उन्होंने निम्नलिखित दो टीलों पर बिन्दु अंकित किए -
टीला 'जी' एंव टीला 'एच'
हड़प्पा में उत्खनन से प्राप्त अवशेष
टीला 'A', 'B
टीला 'A' और टीला 'B' से उत्खनन के दौरान निम्नलिखित अवशेष प्राप्त हुए -1.टटे हुए मटके
2. ईटों का बना हुआ कुओं
3. नालियों
4.मानव अस्थि पंजर
5. मिट्टी की मूर्ति
टीला 'सी'
टीला 'सी' से प्राप्त अवशेष निम्नलिखित हैं-1. मिट्टी की टूटी हुई मूर्तियाँ
2. अन्नागार (गोदीवाड़ा)
3. मिट्टी और कच्ची ईंटों से बनी गढ़ी भट्टियाँ
4.कारीगरों की बस्ती
टीला 'डी'
टीला 'डी' में खुदाई के दौरान प्राप्त अवशेष निम्नलिखित थे -1. दूधिया पत्थर की मुद्राएँ
2. ताँबे व काँसे की मूर्तियाँ
3. पक्की मिट्टी से बनी पशुओं की मूर्तियाँ
टीला 'ई' एवं 'थाना टीला' के अवशेषों का ज्ञान नहीं हो सका।
टीला 'एफ'
टीला 'एफ' से प्राप्त अवशेषों में प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं -1. काँसे के बर्तन
2. खण्डित इमारतें
3. चित्रित मिट्टी के बरतन
दो पहिए वाला ताँबे का रथ
चित्रों वाले काँसे के बरतन
भट्टियां
विशालघर
टीला 'जी'
निम्नांकित अवशेष टीला 'जी' से प्राप्त हुए हैं-एक अंग पशु
फियाँस की बनी मुद्रा छाप
मिट्टी की गोल शलाकाकार 31 मुहरे
मानव की अस्थियाँ
मिट्टी के बरतन
हड़प्पा से अन्य प्राप्त अवशेष
1. हड़प्या में दुर्ग प्रमुख अवशेष के रूप में पाया गया है।
2. हड़प्पा के दुर्ग में छह कोठार प्राप्त हुए हैं जो इंटों के बने चबूतरों पर दो पंक्तियों में बने हुए हैं।
3. हड़प्पा में प्राप्त इन दुर्ग कोठारों में प्रत्येक की लम्बाई 15-23 मी. एवं चौड़ाई 6-09 मी है।
4. दो कमरों वाले बैरक भी हड़प्पावशेष के रूप में प्राप्त हुए हैं।
5. फर्श की दरारों में गेहूँ एवं जौ के दाने प्राप्त हुए हैं।
6. लाल कोटा पत्थर की नग्न पुरुष की प्रतिमा एवं कोटा पत्थर से बनी नृत्य की मुद्रा में एक पुरुष की प्रतिमा प्राप्त हुई है।
8. मोहनजोदड़ो यहाँ पर प्राप्त खण्डहर अवशेषों के कारण 'मोहनजोदड़ो' के नाम से इस स्थल को जाना गया।
- सिन्धी भाषा के अनुसार मोहनजोदड़ो का अर्थ-'मृतकों का टीला' (Mound of the Deads) होता है।
- मोहनजोदड़ो हड़प्पा संस्कृति का सबसे प्रमुख है।
- यह स्थल सिन्धु नदी के पूर्वी किनारे पर 'हड़प्पा स्थल से 483 किमी दूर पाकिस्तान के लरकाना (सिन्ध) जिले में अवस्थित है।
- यह स्थल ढाई वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था।
- सन् 1922 ई. में राखालदास बनर्जी ने एवं 1946 में डॉक्टर हीलर ने मोहनजोदड़ो में उत्खनन कर ऐतिहासिक स्थल के अवशेषों को प्रकाशित किया।
- मोहनजोदड़ो के खण्डहर में कई टीले अवशेष के रूप में प्राप्त हुए जिनमें मोहनजोदड़ो का सबसे ऊँचा टीला 'स्तूप टीला' है।
टीला 'डी-के
टीला 'एच-आर'
टीला 'वी-एस'
सिन्धु सभ्यता के इस ऐतिहासिक स्थल में विशाल नगर होने के संकेत प्राप्त हुए हैं।
मोहनजोदड़ो में उत्खनन से प्राप्त अवशेष
मोहनजोदड़ो के खण्डहर के टीलों से निम्नलिखित अवशेष प्राप्त हुए हैं-
1. पक्की ईंटों से बना एक बुर्ज
2. भवनों के अवशेष
3. एक विशाल स्नानागार (40 फीट लम्बाई x 23 फीट चौड़ाई x 8 फीट गहराई)
4. एक विशाल अन्नागार (45-72 मी. लम्बाई x 15-23 मी चौड़ाई)
5. कृत्रिम धरातल से एक घोड़े का अवशेष
6. मेसोपोटामिया में अवशेष के रूप में प्राप्त हुए मुहर के सदृश सिलेण्डर की आकृति की मुहर
7. नाव की आकृति
8. बुने हुए वस्त्र का एक टुकड़ा (सूती कपड़ा)
9. गाड़ी और घोड़ा के टेराकोटा नमूने
10. दूधिया पत्थर से बनी एक दाढ़ी वाले पुरुष की मूर्ति
11. नृत्य की मुद्रा में काँसे से बनी बालिका
- मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार का जलाशय दुर्ग के टीले में अवस्थित है, जिसके पास कमरे बने हुए हैं।
- स्नानागार के पास के कमरे में एक बड़ा कुआँ पाया गया. जिसका फर्श पक्की ईंटों का बना हुआ था।
- मोहनजोदड़ो की नगरीय सभ्यता के पर्याप्त साक्ष्य वहाँ की नालियाँ, सड़कें एवं व्यवस्थित मकानों की संरचना में व्याप्त है।
- विभिन्न लेखकों के अनुसार मोहनजोदड़ो की जनसंख्या 35,000 से 1,00,000 तक आँकी गई है।
चन्हुदाड़ो
- सिन्धु सभ्यता का यह स्थल मोहनजोदड़ो से दक्षिण पूर्व में लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर सिन्धु नदी के किनारे वर्तमान पाकिस्तान में स्थित है ।
- चन्हुदाड़ो के खण्डहर में तीन टीले खोजे गए हैं ।
- यहाँ पर सिन्धु संस्कृति के साथ-साथ झूकर एवं झांगर हुए के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं ।
- सिन्धु सभ्यता के स्थलों में एकमात्र दुर्गरहित स्थल चन्हुदाड़ो था ।
- यहाँ पर प्राप्त हुए अवशेष हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए अवशेषों के समान ही थे ।
- भवन एवं बरतनों के अवशेषों के आधार पर यहाँ छोटी वस्ती या ग्राम होने के साक्ष्य मिलते हैं ।
1.रंगीन चित्रों से युक्त वरतनों के टुकड़े
2. पत्थर के मटके
3. मुद्राएँ
4.शंख और हाथी दाँत की वस्तुएँ
5. आभूषण एवं मनके बनाने का कारखाना
6. पकाई गई ईंटों के भवन
7. दवात जैसा छोटा पात्र
8.लोहे की वस्तुओं के निर्माण के लिए शिल्प केन्द्र
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कोटदीजी
- सिन्धु सभ्यता का 'कोटदीजी' नामक स्थल सिन्ध में खैरपुर से दक्षिण की ओर मोहनजोदड़ो से 40 किमी दूर अवस्थित है।
- यहाँ पर प्राप्त हुए अवशेष हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से साम्यता रखते हैं।
- कोटदीजी नामक सिन्धु सभ्यता के इस स्थल में ऐसे अनेक अवशेष पाए गए हैं जिन्हें अन्यत्र नहीं खोजा गया।
कोटदीजी में उत्खनन से प्राप्त अवशेष
1. चित्र-धूसरितभाण्ड
2. मुहर एवं मुद्राएँ
3.बाणाग्र
4. पत्थरों द्वारा निर्मित मकान की नींव
5. कच्ची ईट से निर्मित भवन
जरूर पढ़े
2. मुहर एवं मुद्राएँ
3.बाणाग्र
4. पत्थरों द्वारा निर्मित मकान की नींव
5. कच्ची ईट से निर्मित भवन
सुत्कगेनडोर
- सिन्धुघाटी सभ्यता का यह स्थल पाकिस्तान में कराची से लगभग 480 किमी पश्चिम एवं मकरान समुद्र तट से 56 किमी उत्तर में दाश्त नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है ।
- उत्खनन के दौरान यहाँ पर दुर्लभ अवशेषों की खोज की गई ।
- 'जॉर्ज डेल्स' नामक विद्वान् ने यहाँ पर सिन्धु सभ्यता के तीन चरणों की खोज की थी ।
- सुत्कगेनडोर में व्यावसायिक स्थल होने के पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं ।
- जॉर्ज डेल्स के अनुसार-“यह स्थल बन्दरगाह के रूप में सिन्धु सभ्यता एवं बेबीलोन के बीच सामुद्रिक व्यापार का प्रमुख केन्द्र था।
- सुत्कगेनडोर में अवशेष के रूप में एक बन्दरगाह एक दुर्ग एवं नगरीय सभ्यता के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं ।
- डाबरकोट सिन्धुघाटी सभ्यता का ‘डावरकोट' नामक स्थल कांधार व्यापारिक मार्ग पर सिन्धु नदी से लगभग 200 किमी दूर लोरालाई के दक्षिण में 'झोव' नामक घाटी में खोजा गया।
- डाबरकोट' नामक सिन्धु सभ्यता के इस स्थल में नगर योजना के स्पष्ट प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
- डाबरकोट में प्राकहड़प्पा-संस्कृति, हड़प्पा-संस्कृति एवं हड़प्पोत्तरकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- तीनों सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त होने के कारण इसका सर्वाधिक महत्त्व है।
लोथल
हड़प्पा या सिन्धुघाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल माना जाने वाला लोथल गुजरात राज्य में खम्भात खाड़ी के पास स्थित है।
लोथल में खुदाई के दौरान निम्नलिखित अवशेष प्राप्त -
1.मुहर
2. भाण्ड
3. उपकरण
4. भवन एवं दुकानों के खण्डहर
5. गोदीबाड़ा (अन्नागार)
6. ईंटों से बना एक कृत्रिम बन्दरगाह
7. धान की खेती एवं चावल का भूसा
8. अग्निवेदियों के साक्ष्य
9. कब्रिस्तान में पुरुष महिलाओं को एक साथ गाड़ने के साक्ष्य
10. अश्व का टेराकोटा नमूना
11. मनके बनाने का कारखाना
12. शंख के आभूषण निर्माण के साक्ष्य
- लोथल नामक इस सिन्धु सभ्यता के स्थल की खुदाई एस. आर. राव ने सन् 1957 में की थी।
- यहाँ पर गोदीबाड़ा एवं भवन तथा दुकानों के भग्नावशेष से बस्ती होने के प्रमाण मिलते हैं।
लोथल में प्राप्त विभिन्न साक्ष्य नगर नियोजनशीलता के व्यवस्थित प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
रंगपुर
- सिन्धुघाटी सभ्यता का यह स्थल भादर नदी के किनारे लोथल से लगभग 50 किलोमीटर उत्तर-पूर्व और अहमदाबाद के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
- रंगपुर का उत्खनन एस. आर. राव द्वारा सन् 1954 में किया गया।
- पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार लोथल के बाद रंगपुर में हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव हुआ।
- यहाँ पर उत्खनन से प्राप्त कई अवशेष हड़प्पा सभ्यता के सदृश थे।
- प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता एस. आर. राव के अनुसार-"रंगपुर की सभ्यता की स्थापना लोथल के बाढ़ पीड़ितों के आकर बस जाने से हुई है।
उत्खनन के दौरान रंगपुर से निम्नलिखित अवशेष प्राप्त हुए -
1. कच्ची ईटों के सुरक्षा दुर्ग
2. मिट्टी के चित्रित बर्तन
3. हड्डी एवं हाथी दाँत के आभूषण
4. विशिष्ट नियोजित ईमारतें
5. नासियों
6. चावल की भूसी
रंगपुर में प्राप्त अवशेष हड़प्पा की हासोन्मुख सभ्यता को प्रदर्शित करते हैं।
रोजदि
- सिन्धुघाटी सभ्यता का यह स्थल राजकोट से दक्षिण में भादर नदी के किनारे रंगपुर नामक ऐतिहासिक स्थल के निकटस्थ प्रदेश में स्थित है।
- रोजदि नामक इस स्थल में भयंकर अग्निकाण्ड होने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- मकानों के चारों ओर लगी पत्थरों की घेराबन्दी रोजदि के असुरक्षित होने के प्रमाण की पुष्टि करती हैं।
- इस तरह की घेराबन्दी सिन्धुसभ्यता के किसी भी स्थल में नहीं पाई गई है।
उत्खनन के दौरान सिन्धुघाटी सभ्यता के 'रोजदि' नामक इस स्थल से निम्न अवशेष प्राप्त हुए हैं -
1. लाल एवं काली मिट्टी के बरतन
2. विभिन्न आभूषण
3. नगर व्यवस्था के पर्याप्त साक्ष्य
4. भीषण अग्निकाण्ड के साक्ष्य
सुरकोटड़ा
- सिन्धुघाटी सभ्यता का यह स्थल कच्छ जिले में खोजा गया था।
- इस स्थल पर एक बड़ी चट्टान से ढकी कब्र प्राप्त हुई।
- सुरकोटड़ा के अधिकतर अवशेष हड़प्पा संस्कृति के अन्य अवशेषों से पूर्ण रूप से मिलते हैं।
- विभिन्न साक्ष्यों एवं अनुसंधानों के आधार पर स्पष्ट होता है कि सुरकोटड़ा की संस्कृति हड़प्पा संस्कृति का विकसित स्वरूप था।
उत्खनन से सुरकोटड़ा में निम्न अवशेष प्राप्त हुए हैं-
1. अग्निकाण्ड के साक्ष्य
2. हड्डियों से भरा मिट्टी एवं ताँवे का कलश
3.चित्र एवं रंगों से सज्जित मिट्टी के बर्तन
4.आभूषण
5. चट्टान से ढकी कद्र
6. गढ़ी एवं आवासीय भवनों के भग्नावशेष
सुरकोटड़ा की सभ्यता रोजदि की सभ्यता से कुछ हद तक साम्यता रखती है।
मालवण
सिन्धुघाटी सभ्यता का यह ऐतिहासिक स्थल ताप्ती नदी के मुहाने पर काठियावाड़ के सूरत जिले में स्थित है।
मालवण में प्रमुख व्यापारिक केन्द्र होने के प्रमाण मिले हैं।
यहाँ पर उत्खनन से निम्नलिखित अवशेष प्राप्त हुए हैं-
1. एक नहर
2.एक बन्दरगाह
3. मिट्टी के बरतन
4.कच्ची ईंटों का चबूतरा
5. आभूषण
विभिन्न पुरातत्त्ववेत्ताओं एवं उत्खनन के दौरान पाए गए साक्ष्यों के आधार पर मालवण का सिन्धुघाटी सभ्यता के बन्दरगाह होने के पर्याप्त साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
संघोल
सिन्धुघाटी सभ्यता का यह स्थल चण्डीगढ़ से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
संघोल से प्राप्त अवशेष सिन्धु घाटी सभ्यता के अन्तिम चरण के अवशेष प्रतीत होते हैं।
सिन्धुघाटी सभ्यता के संघोल नामक स्थल से प्राप्त हुए अवशेष निम्नलिखित है -
1. ताम्र एवं पत्थर के उपकरण
2. हथियार एवं मुहर
3.मिट्टी के बर्तन
4. मिट्टी से बने आभूषण
5. कुटी हुई मिट्टी एवं कच्ची ईंटों से बनी मकान की दीवारें
संघोल नामक ऐतिहासिक स्थल से रोपड़ एवं बाड़ा (पंजाब) के समान ही अवशेष मिले हैं।
यहाँ से प्राप्त साक्ष्य सिन्धुघाटी सभ्यता के लुप्त होने के समय की पुष्टि करते हैं।
रोपड़
सिन्धुपाटी सभ्यता का यह ऐतिहासिक स्थल पंजाब में शिवालिक पहाड़ियों में अवस्थित है।
रोपड़ में हड़प्पा सभ्यता के दो चरण प्राप्त हुए हैं।
इस स्थल पर सिन्धघाटी सभ्यता के सदृश निम्नलिखित अवशेष प्राप्त हुए हैं -
1.कच्ची ईंटों से निर्मित मकान
2. कुटी हुई मिट्टी एवं कच्ची ईंट की मकान की दीवारें
3. हड़प्पा के समान मिट्टी के आभूषण
4.ताम्र कुल्हाड़ी
5. एक मुहर
पूर्वोक्त अवशेषों के अतिरिक्त रोपड़ में हड़प्पा स्थल से प्राप्त अवशेषों की तरह ही मिट्टी के बरतन उत्खनन से प्राप्त हुए हैं।
बाड़ा
हड़प्पा सभ्यता का यह ऐतिहासिक स्थल पंजाब में रोपड़ के निकट स्थित है।
यहाँ पर निम्नलिखित अवशेष उत्खनन के दौरान प्राप्त हुए -
1. पत्थर से निर्मित मकान की नींव
2.कच्ची ईंट की दीवारें
3. मिट्टी के बरतन 4
4.मिट्टी के आभूषण
यहाँ से प्राप्त अवशेष हड़प्पा सभ्यता के हासोन्मुख स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं।
बाड़ा से प्राप्त मिट्टी के बरतन कोटदीजी एवं कालीबंगा के हड़प्पा पूर्व संस्कृति से समानता रखते हैं।
राखीगढ़ी
- हड़प्पा सभ्यता का यह स्थल जींद के निकटस्थ क्षेत्र में अवस्थित है।
- यहाँ पर हड़प्पा संस्कृति से पूर्व एवं हड़प्पा संस्कृति के बाद के अवशेष साक्ष्य के रूप में पाए गए हैं।
- राखीगढ़ी नामक इस ऐतिहासिक स्थल में उत्खनन के दौरान एक 'मुहर' प्राप्त हुई थी।
- यहाँ से प्राप्त मुहर लिपिवद्ध थी, लेकिन अज्ञातलिपि होने के कारण इसे पढ़ा जाना सम्भव नहीं हो सका।
वणवाली
सिन्धु सभ्यता का यह ऐतिहासिक स्थल हरियाणा राज्य के हिसार जिले में स्थित है।
आर. एस. विष्ट द्वारा वणवाली नामक इस स्थल की खुदाई सन् 1973-74 में कराई गई।
वणवाली में उत्खनन के दौरान निम्नलिखित अवशेष साक्ष्य स्वरूप प्राप्त हुए हैं -
1. मिट्टी के बरतन
2. ताँबे के हथियार
3. ताम्र उपकरण
4. मनके
5. बाणान
6. तौलने के बाँट
7. लिपिबद्ध मुहरें
8. मूर्तियों के अवशेष
वणवाली में सुरक्षा के लिए घेराबन्दी, किलाबन्दी एवं हड़प्या संस्कृति के नागरिक स्वरूप के पर्याप्त साक्ष्य प्राप्त हुए।
आलमगीरपुर
- सिन्धु सभ्यता का यह स्थल मेरठ (उ.प्र.) के निकट हिन्डन नदी के किनारे पर अवस्थित है।
- सिन्धु सभ्यता के गंगा-यमुना दोआब में पाया जाने वाला यह अपनी किस्म का पहला स्थल है।
- यहाँ पर खुदाई के दौरान मिट्टी के बरतन, आभूषण एवं मिट्टी से बनी मकान की दीवारें खोजी गई हैं।
- उत्खनन से आलमगीरपुर में प्राप्त अवशेष हड़प्पा संस्कृति के पतनोन्मुख साक्ष्यों को प्रदर्शित करते हैं।
कालीबंगा
- सिन्धुघाटी सभ्यता का यह ऐतिहासिक स्थल राजस्थान राज्य के गंगानगर जिले में स्थित है।
- कालीबंगा घग्घर नदी के किनारे पर स्थित है।
- पुरातत्त्वविदों का मानना है कि कालीबंगा, गंगानगर व हनुमानगढ़ दोनों की सीमा पर होने के कारण कालीबंगा की स्थिति कई पुस्तकों में हनुमानगढ़ भी बताई जाती है।
- 'हड़प्पा और मोहनजोदड़ो' के बाद सैन्धव साम्राज्य की तीसरी राजधानी थी।
- कालीबंगा में उत्खनन से लकडी की नालियाँ प्राप्त हुई हैं, जो अन्यत्र कहीं भी नहीं खोजी गई हैं।
- यहाँ से प्राप्त आभूषण, उपकरण, हथियार एवं अन्य सामग्री पूर्णतः हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से मिलती हुई थी।
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ-'काली चूड़ियाँ' होता है।
- कालीबंगा में मातृदेवी की आकृतियाँ या मूर्तियाँ प्राप्त नहीं हुई हैं।
- ऐसा किसी स्थल पर नहीं हुआ।
- कालीबंगा सिन्धुसभ्यता का आयताकार नगर है जो प्राक़ हड़प्पाकालीन संस्कृति के साक्ष्यों का परिचायक है।
- सिन्धु सभ्यता का यह सबसे विशिष्ट स्थल है।
कालीबंगा में उत्खनन से प्राप्त अवशेष
1. मिट्टी के बरतन
2. लकड़ी की नालियाँ
3.आभूषण
4.हथियार (हड़प्पा सदृश)
5.हल चला मेड़ों युक्त खेत
6. अग्निवेदियों से युक्त महत्वपूर्ण स्थल
7.कच्ची ईंटों के चबूतरे
8. सड़कों के अवशेष
बड़गाँव और अम्बखेड़ी
सिन्धु सभ्यता के ये दोनों स्थल उत्तर प्रदेश राज्य के सहारनपुर जिले में यमुना की सहायक नदी मस्करा के तट पर स्थित है।
बड़गाँव एवं अम्बखेड़ी ऐसे सिन्धु सभ्यता के स्थल हैं जो कुछ वर्षों पूर्व उत्खनन से प्राप्त हुए हैं।
खुदाई के दौरान प्राप्त होने वाले अवशेष हड़प्पा संस्कृति से पर्याप्त साम्यता रखते हैं।
बड़गाँव और अम्बखेड़ी से साक्ष्य बतौर प्राप्त हुए अवशेष-
1.काँचली मिट्टी की चूड़ियाँ
2. ताँबे के छल्ले
3. मिट्टी के चित्रित बर्तन
4. मुहर एवं हड्डियों से भरे मिट्टी के कलश
यहाँ पर नागरिक व्यवस्था से सम्बन्धित कोई भी प्रमाण दृष्टिगत नहीं हुए हैं।
मीत्ताथल
मीत्ताथल हरियाणा राज्य के भिवानी नामक स्थान पर खोजा गया सिन्धु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख स्थल है।
इस स्थल से हड़प्पा संस्कृति के पतनोन्मूख एवं विकासशील संस्कृति के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
यहाँ पर दो बार उत्खनन हुआ है।
प्रथम बार उत्खनन से प्राप्त अवशेष -
1. गढ़ी
2. निचले नगरों की योजना एवं सुनियोजित नगर विन्यास के साक्ष्य।
दूसरी बार उत्खनन से प्राप्त अवशेष -
1. कच्ची मिट्टी की ईंटें
2.खण्डित ईंटें
3.हड़प्पा के सदृश मिट्टी के बर्तन
4. ताम्र उपकरण एवं हथियार
5. हाथीदाँत के आभूषण एवं मिट्टी के खिलौने,
मीत्ताथल से प्रथम उत्खनन में सिन्धु सभ्यता के विकसित स्वरूप एवं द्वितीय उत्खनन में हासोन्मुख सभ्यता के साक्ष्य अवशेष के रूप में प्राप्त हुए हैं।
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