Rajasthan Ki Nadiya PDF - राजस्थान की नदियाँ
राजस्थान की अपवाह प्रणाली को प्रवाह के आधार पर तीन भागों में बाँटा जा सकता है -
1. आंतरिक प्रवाह की नदियाँ-
घग्घर, कांतली, काकनी, साबी, मेंथा, रूपनगढ़, रूपारेल, सागरमती आदि।
2. अरब सागर की नदियाँ-
लूणी, माही, सोम, जाखम, साबरमती, पश्चिमी बनास, सूकड़ी, जवाई, जोजड़ी, मीठड़ी आदि।
3. बंगाल की खाड़ी की नदियाँ-
चम्बल, बनास,कोठारी, कालीसिंध, बाणगंगा, पार्वती, परवन, बामनी, चाखन, गंभीरी, कुनु, मेज, मांशी, खारी आदि।
राजस्थान में नदियों का अपवाह क्षेत्रफल एवं प्रतिशत
- पूर्णत: बीकानेर सम्भाग आंतरिक प्रवाह की नदियों वालसंभाग है।
- जोधपुर संभाग आंतरिक प्रवाह तथा अरब सागर की नदियोंवाला संभाग है।
- उदयपुर संभाग अरब सागर तथा बंगाल की खाडी की नदियों वाला संभाग है।
- कोटा संभाग बंगाल की खाड़ी की नदियों वाला संभाग है।
- भरतपुर संभाग आंतरिक प्रवाह तथा बंगाल की खाड़ी की नदियों वाला संभाग है।
- अजमेर संभाग आतंरिक, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर की नदियों वाला संभाग।
- जयपुर संभाग आंतरिक प्रवाह तथा बंगाल की खाड़ी की नदियों वाला संभाग है।
आंतरिक प्रवाह की नदियाँ
घग्घर नदी
- इस नदी का उद्गम हिमाचल प्रदेश, हिमालय पर्वत, शिवालिक या कालका पहाड़ी से होता है।
- हिमाचल में बहने के पश्चात् पंजाब व हरियाणा में बहती हुई राजस्थान में हनुमानगढ़ के टिब्बी तहसील के तलवाड़ा गांव में प्रवेश करती है और भटनेर में विलुप्त हो जाती है।
- जब इस नदी में वर्षा अधिक होती है तो इसका जल अनूपगढ़ तक पहुंच जाता है और जब यह नदी पूर्व में पूरे उफान पर होती है तो इसका जल पाकिस्तान के बहावलपुर के फोर्ट अब्बास तक पहुंच जाता है।
- वर्तमान में फोर्ट अब्बास बहावलनगर जिले में आता है।
- घग्घर नदी को सरस्वती, द्वषद्वती, नट, नाली, मृत, सोतर के नाम से भी जाना जाता है।
- वैदिक काल में इस नदी को सरस्वती या द्वषद्वती के नाम से भी जाना जाता है।
- सरस्वती नदी के पाट पर बहने के कारण इस नदी को नाली नाम से भी जाना जाता है।
- उद्गम स्थल पर कभी विलुप्त होने व कभी प्रवाहित होते के कारण इसे नट के नाम से जाना जाता है।
- भटनेर के मैदान में विलुप्त होने के कारण इसे मृत नदी के नाम से जाना जाता है।
- घग्घर नदी को राजस्थान का शोक भी कहा जाता है।
- घग्घर नदी एकमात्र नदी है जो उत्तर दिशा से राजस्थान में प्रवेश करती है।
- राजस्थान में हिमालय का जल लाने वाली एकमात्र नदी घग्घर है।
- पाकिस्तान में इस नदी का बहाव क्षेत्र हकरा कहलाता है।
- हनुमानगढ़ में इस नदी के किनारे रंगमहल व कालीबंगा सभ्यता विकसित हुई।
- भटनेर दुर्ग, हनुमानगढ़ शहर, तलवाड़ा झील इसी नदी के किनारे पर स्थित है।
- घग्घर राजस्थान में प्रवाहित होने वाली एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय नदी है।
- सरतगढ़ व अनूपगढ़ इसी नदी के किनारे पर स्थित है।
- हरियाणा में इस नदी के किनारे बनवाली सभ्यता व ओटू झील है।
- घग्घर आंतरिक प्रवाह की सबसे लम्बी नदी है।
- इसकी लम्बाई 465 किलोमीटर है।
कांकनी नदी
- इस नदी का उद्गम जैसलमेर के कोटड़ी गांव से होता है।
- जैसलमेर में ही बहती हुई यह नदी मीठा खाड़ी नामक स्थान पर विलुप्त हो जाती है।
- कांकनी आंतरिक प्रवाह की सबसे छोटी नदी है।
- इसकी लम्बाई 17 किलोमीटर है।
- कांकनी नदी को कांकनेय व मसूरदी नदी के नाम से भी जाना जाता है।
- कांकनी को उद्गम स्थल पर मसूरदी के नाम से जाना जाता है।
- जैसलमेर में यह नदी बुझ झील (रूपसीगाँव) को जल की व्यवस्था करवाती है।
- रोहिली नदी (जैसलमेर), नीमड़ा नदी (बाड़मेर)- इन दोनों नदियों के कारण 2006-07 में बाड़मेर के कवास क्षेत्र में बाढ़ आ गई थी।
कांतली नदी
- इस नदी का उद्गम सीकर की खंडेला पहाड़ी से होता है।
- सीकर में बहने के पश्चात् झुंझुनू में बहती हुई मंड्रेला गांव में विलुप्त हो जाती है।
- कांतली नदी को कांटली व मौसमी नदी के नाम से भी जाना जाता है।
- नीम का थाना (सीकर) में इस नदी के किनारे गणेश्वर की सभ्यता स्थित है।
- गणेश्वर सभ्यता में मछली पकड़ने के चार सौ कांटे मिले है।
- इस सभ्यता को ताम्रयुगीन सभ्यता की जननी कहा जाता है।
- इस नदी का बहाव क्षेत्र तोरावाटी कहलाता है।
- आंतरिक प्रवाह की दूसरी सबसे लंबी नदी है।
- जिसकी लम्बाई 100 किलोमीटर है।
- राजस्थान में पूर्ण बहाव की दृष्टि से आंतरिक प्रवाह की यह सबसे लम्बी नदी है।
- झुंझुनू जिले को यह नदी को दो भागों में बांटती है।
- बनास नदी टोंक जिले को दो भागों में विभाजित करती है।
- झुंझुनू में इस नदी के किनारे सूनारी सभ्यता स्थित है।
मेंथा नदी
- नदी का उद्गम जयपुर में मनोहरपुर थाना से होता है।
- जयपुर में बहने के पश्चात् यह नदी नागौर में बहती हुई सांभर झील में अपना जल गिराती है।
- मेंथा नदी को मेन्ढा नदी के नाम से भी जाना जाता है।
- नागौर में इस नदी के किनारे लूणवा जैन तीर्थ स्थित है।
- सांभर झील में जल गिराने वाली नदियां- मेंथा, रूपनगढ़, खारी, खण्डेल।
रूपनगढ़ नदी
- इस नदी का उद्गम अजमेर के कुचील नामक स्थान से होता है।
- अजमेर में ही बहती हुई यह नदी सांभर झील में अपना जल गिराती है।
- अजमेर में इस नदी के किनारे निम्बार्क संप्रदाय की पीठ सलेमाबाद स्थित है।
सागरमती नदी
- इस नदी का उद्गम अजमेर के बीसला तालाब से होता है।
- अजमेर में ही बहती हुई यह नदी गोविंदगढ़ नामक स्थान पर विलुप्त हो जाती है।
साबी नदी
- इस नदी का उद्गम जयपुर की सेंवर पहाड़ी से होता है।
- जयपुर में यह नदी अलवर में बहती हुई हरियाणा के गुडगांव जिले के पटोदी गांव की नजफगढ़ झील में जल गिराती है।
- अलवर की यह प्रमुख नदी है।
- जयपुर का जोधपुरा सभ्यता स्थल इस नदी के किनारे पर स्थित है।
- जोधपुरा सभ्यता में हाथीदाँत अवशेष प्राप्त हुए है।
- उत्तर दिशा में बहने वाली आंतरिक प्रवाह की यह एकमात्र नदी है।
रूपारेल नदी
- इस नदी का उद्गम अलवर की थानागाजी तहसील में स्थित उदयनाथ पहाड़ी से होता है।
- अलवर में बहने के पश्चात् यह नदी भरतपुर जिले में ही कुशलपुर गांव के समीप बहती हुई विलुप्त हो जाती है।
- रूपारेल को लसवारी, बारह, बराह नदी के नाम से भी जाना जाता है।
- भरतपुर में इस नदी पर डींग महल, नौह सभ्यता, मोती झील बांध, सीकरी बांध स्थित है।
- मोती झील का निर्माण सूरजमल जाट के द्वारा किया गया।
- इस झील में नील हरित शैवाल पाए जाते हैं।
काकुण्ड/ककुंद नदी
- इस नदी का राजस्थान में प्रवेश बयाना तहसील भरतपुर के दक्षिणी पश्चिमी सीमा से होता है।
- काकुण्ड नदी का जल बारेठा बांध में एकत्रित किया जाता है।
- बारेठा बांध के जल का उपयोग बयाना और रूपवास तहसीलों में किया जाता है।
- काकुण्ड नदी के किनारे चैनपुरा व बारेठा नामक गांव स्थित है।
- दिर नामक जल प्रताप काकुण्ड नदी पर स्थित है।
- इसका पानी कभी समाप्त नहीं होता।
सरस्वती नदी
- इस नदी का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद के दसवें मंडल के 136 में सूक्त के पांचवें मंत्र में मिलता है।
- इस नदी का उद्गम तुषार क्षेत्र में स्थित मीरपुर पर्वत से होता है।
- पंजाब में सरस्वती नदी को चितांग कहते हैं।
अरब सागर में गिरने वाली नदियां
लूनी नदी
- इस नदी का उद्गम अजमेर आनासागर झील नाग बाड़ी से होता है।
- अजमेर में बहने के पश्चात नागौर व पाली में बहती हुई जोधपुर में प्रवेश करती है।
- जोधपुर, बाड़मेर व जालौर में बहती हुई कच्छ का रण में मिल जाती है।
- लूनी नदी को उद्गम स्थल पर साबरमती के नाम से जाना जाता है।
- लूनी नदी को नाग पहाड़ी से गोविंदगढ़ तक साक्री नदी के नाम से जाना जाता है।
- लूनी नदी का जल बालोतरा (बाड़मेर) तक मीठा होता है तथा बाद में खारा हो जाता है।
- इसी कारण इस नदी को मीठी खारी नदी के नाम से भी जाना जाता है।
- लूनी नदी को पश्चिमी मरुस्थल की गंगा व मारवाड़ की गंगा के नाम से भी जाना जाता है।
- लूणी नदी राजस्थान के कुल अपवाह क्षेत्र के लगभग 10.41 प्रतिशत भू-भाग पर प्रवाहित होती है।
- लूणी नदी अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी में समानांतर बहती है।
- जब पुष्कर की पहाड़ियों में अधिक वर्षा होती है तो बाढ का प्रकोप बालोतरा, बाड़मेर में देखा जा सकता है।
- जोधपुर में लूणी नदी पर जसवन्त सागर बांध स्थित है।
- जालौर व गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्र में इस नदी का बहाव क्षेत्र रेल/नेड़ा कहलाता है।
- लूणी व बनास दो ऐसी नदियां है जो अरावली पर्वतमाला को मध्य से काटती है।
- कालीदास ने लूणी नदी को अंतः सलिला की उपाधि दी है।
- लूणी की सभी सहायक नदियां इसके दक्षिणी दिशा (अरावली पर्वत माला) में बहती हई इसमें मिलती है।
- परंतु जोजड़ी अपवाद के रूप में एकमात्र सहायक नदी है जो उत्तर दिशा में बहती हुई इसमें मिलती है।
- लूणी नदी गौड़वाड़ प्रदेश में बहने वाली प्रमुख नदी है।
- लूणी नदी अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बहती है।
सहायक नदियां-
- सुकड़ी, सगाई, सागी, बाड़ी, लीलड़ी, जोजड़ी, मीठड़ी, जवाई , गुहिया, सरस्वती नाला, मित्री।
- लूणी की कुल लम्बाई 495 किमी है।
- राजस्थान में इसकी लम्बाई 330 किमी है।
सरस्वती नाला
- इस नदी का उद्गम अजमेर में पुष्कर पहाड़ी से होता है।
- अजमेर में ही बहती हुई लूणी नदी में मिल जाती है।
- अजमेर में यह पुष्कर झील को जल की व्यवस्था उपलब्ध करवाती है।
- जोजड़ी नदी उद्गम- इस नदी का उद्गम नागौर के पोटल/पाडल/पाट्दा नामक स्थान से होता है।
- नागौर में बहने के पश्चात् जोधपुर में जसवंत सागर बांध के पास खेजड़ली खुर्द नामक स्थान पर लूणी नदी में मिल जाती है।
- फ्रास की राजधानी पेरिस की तर्ज पर वाटर फ्रण्ट पर्यटन स्थल विकसित करने की योजना जोजड़ी नदी के किनारे जोधपुर शहर के पास सालावास से बोरनाड़ा गांव के मध्य प्रस्तावित है।
जवाई नदी
- उदगम- इस नदी का उद्गम पाली की बाली तहसील के गोरिया गांव से होता है।
- पाली में बहने के पश्चात् जालौर व बाडमेर में बहती हुई बाड़मेर के गुढा नामक गांव में लणी नदी में मिल जाती है।
- सुमेरपुर, पाली में इस नदी पर जवाई बांध स्थित है।।
- जवाई बांध को मारवाड़ का अमृत सरोवर कहा जाता है।
- जवाई की सहायक नदियाँ बाण्डी व खारी है।
- जवाई नदी में जल आपूर्ति हेतु सेई नदी का जल सूरंग द्वारा जवाई नदी में लाया जा रहा है।
- यह राजस्थान की पहली जल सुरंग है।
पश्चिमी बनास
- इस नदी का उद्गम सिरोही के नयासानबारा गांव से होता है।
- सिरोही में बहने के पश्चात् गुजरात में कच्छ की खाड़ी में जल गिराती है।
- सिरोही का आबूनगर इस नदी के किनारे पर स्थित है।
- गुजरात का डीसा शहर इस नदी के किनारे पर स्थित है।
साबरमती नदी
- इस नदी का उद्गम उदयपुर में गोगुंदा की पहाड़ियों में स्थित झाड़ोल तहसील के पदराला गांव की पहाड़ी से होता है।
- उदयपुर में बहने के पश्चात् यह नदी गुजरात में बहती हुई खंभात की खाड़ी में जल गिराती है।
- साबरमती नदी झाड़ोल व फुलवारी की नाल के मध्य पाँच सरिताओं में विभक्त होकर राजस्थान से बाहर निकलती है।
- गुजरात में इस नदी के किनारे साबरमती आश्रम, गांधीनगर व अहमदाबाद स्थित है।
- इसका उद्गम राजस्थान से होता है, परंतु यह गुजरात की प्रमुख नदी है।
- इसकी सहायक नदी हथमती, याजम हैं।
- उदयपुर की झीलों में साबरमती का जल डालने के लिए देवास सुरंग में खुदाई की गई जिसका कार्य अगस्त 2011 में पूरा हुआ।
- देवास सुरंग राज्य की सबसे लम्बी सुरंग है।
- इसकी कुल लम्बाई 11.5 किमी. है।
माही नदी
- इस नदी का उद्गम मध्य प्रदेश, धार जिला, सरदारपुरा गांव, मेहन्द झील, अममोरू पहाड़ी से होता है।
- मध्यप्रदेश में बहने के पश्चात् राजस्थान में बाँसवाड़ा के खांदू गांव से प्रवेश करती है।
- बाँसवाडा और प्रतापगढ़ की सीमा पर बहने के पश्चात् गुजरात में बहती हई खंभात को खाड़ी/कैम्बे की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
- माही नदी को आदिवासियों की गंगा तथा बांगड की गंगा के नाम से भी जाना जाता है।
- माही नदी को दक्षिण राजस्थान की स्वर्ण रेखा के नाम से भी जाना जाता है।
- बाँसवाड़ा और प्रतापगढ़ में माही नदी का बहाव क्षेत्र काठल का क्षेत्र तथा छप्पन का मैदान कहलाता है।
- माही नदी पर बाँसवाड़ा के बोरखेड़ा में आदिवासी क्षेत्र की सबसे बड़ी परियोजना माही बजाज सागर परियोजना संचालित है।
- सुजलाम सुफलाम क्रांति का संबंध माही नदी से है।
- कांठल के क्षेत्र में बहने के कारण इस नदी को कांठल की गंगा कहते है।
- राज्य में बहने वाली यह एकमात्र नदी है, जिसका उद्गम दक्षिणी में होता है और उत्तर में बहने के पश्चात् अपना जल दक्षिण में गिराती है।
- कर्क रेखा को दो बार काटने वाली राज्य की यह एकमात्र नदी है।
- माही नदी अंग्रेजी के उल्टे अक्षर यू/वी की आकृति में बहती है।
- माही को जब कर्क रेखा काटती है तो इसकी आकृति अंग्रेजी के 'ए' के समान दिखाई देती है।
- डूंगरपुर के वेणेश्वर के नवाटापुरा नामक स्थान पर सोम, माही, जाखम का त्रिवेणी संगम होता है।
- यहाँ माघ पूर्णिमा को विशाल मेला भरता है।
- इस मेले को बांगड़ का पुष्कर व आदिवासियों का कुंभ के उपनाम से जाना जाता है।
- वेणेश्वर स्थान पर संत मावजी ने एक शिवलिंग की स्थापना करवाई यह एकमात्र खण्डित शिवलिंग है जिसकी पूजा होती है।
- माही नदी के किनारे औदिच्य ब्राह्माणों की गद्दी स्थित है।
- डूंगरपुर में इस नदी से भीखाबाई सागवाड़ा नहर निकलती है।
- बोहरा सम्प्रदाय की पीठ गलियाकोट एवं सैय्यद फकरूद्दीन की मजार इसी नदी के किनारे स्थित है।
- गुजरात के पंचमहल जिले के रामपुर नामक स्थान पर इस नदी पर कडाणा बांध स्थित है।
- माही और चंबल राज्य में बहने वाली बारहमासी नदियां है।
- माही नदी की कुल लम्बाई 576 किमी. है।
- राजस्थान में इसकी लम्बाई 171 किमी. है।
माही की प्रमुख सहायक नदियां-
सोम, जाखम, अनास, चाप, हरण, मोरेन, ऐराव।
जाखम नदी
- इस नदी का उद्गम प्रतापगढ़ की छोटी सादड़ी तहसील में स्थित भंवरमाता की पहाड़ी से होता है।
- प्रतापगढ़ में बहने के पश्चात् यह नदी उदयपुर में बहती हुई दूंगरपुर के नोरावल बिलूरा गांव में सोम नदी में मिल जाती है।
- प्रतापगढ़ में इस नदी पर राज्य का सबसे ऊँचा बांध जाखम बांध स्थित है।
सोम नदी
- इस नदी का उद्गम उदयपुर में बाबलवाड़ा के जंगल, बीछामेड़ा पहाड़ी, फलवारी की नाल अभयारण्य से होता है।
- उदयपुर में बहने के पश्चात ईंगरपुर के बेणेश्वर नामक स्थान पर माही में मिल जाती है।
- उदयपुर में इस नदी पर सोमकागदर बांध स्थित है।
- फुलवारी की नाल अभयारण्य से सोम, मानसी व वाकल नदियों का उद्गम होता है।
सूकड़ी नदी
- इस नदी का उद्गम देसूरी (पाली) के निकट अरावली पर्वत श्रृंखला की मुख्य श्रेणी के पश्चिमी ढ़ाल से होता है।
- पाली व जालौर जिले में बहने के पश्चात बाड़मेर जिले में समदड़ी के निकट लूनी नदी में मिल जाती है।
- इस नदी के जल का उपयोग कृषि कार्यों के लिए किया जाता है।
सकड़ी नदी के किनारे माजल और जालियां नामक गांव स्थित है।
मित्री नदी
- मित्री नदी का उद्गम जालौर जिले में अरावली की पहाड़ियों से होता है।
- जालौर जिले के आहोर तहसील में यह मैदानी क्षेत्रों में लुप्त हो जाती है, लेकिन यह डूडियां में पुनः नदी का रूप धारण कर लेती है।
- जालौर, बाड़मेर में बहती हुई यह लूनी नदी में मिल जाती है।
- मित्री नदी जोधपुर में लगभग 81 किलोमीटर प्रवाहित होती है।
- वर्षा ऋतु में यह नदी करनावल नाला के माध्यम से मंगला गांव के निकट लूनी नदी में मिल जाती है।
वाकल नदी
- वाकल नदी का उद्गम गोगुन्दा (उदयपुर) तहसील के गोरा नामक गाँव के निकट स्थित पहाड़ियों से होता है।
- उदयपुर में बहने के पश्चात् गुजरात के गाऊ पीपली नामक गाँव में प्रवेश करती है।
- वाकल नदी के किनारे उदयपुर जिले के राधेगढ़, ओघना, पनवाड़ा और कोटवाड़ा गांव स्थित है।
- वाकल नदी उदयपुर जिले में 112 किलोमीटर प्रवाहित होती है।
- मानसी, वाकल और देवास बांध का पानी कोटड़ा तालाब में डालते हुऐ नान्देश्वर चैनल के जरिय उदयपुर जिले के पिछौला झील में डाला जा रहा है।
सूकली नदी
- सूकली नदी का उद्गम सिरोही जिले की आबू और निबाज की पहाड़ियों के मध्य स्थित सिलोरा की पहाड़ियों से होता है।
- सूकली की पश्चिमी शाखा सलवाड़ा पहाड़ियों से निकलती है और लगभग 40 किलोमीटर तक प्रवाहित होने के पश्चात् जावाल के निकट यह पूर्वी शाखा में मिल जाती है।
- यहां से इस नदी का नाम सीपू नदी हो जाता है।
- सूकली नदी को सीपू नदी के नाम सभी जाना जाता है।
- सूकली नदी पर सेलवाड़ा बांध परियोजना स्थित है।
अनास नदी
- अनास नदी का उद्गम मध्यप्रदेश में होता है।
- राजस्थान में इस नदी का प्रवेश बाँसवाड़ा जिले से होता है।
- बाँसवाड़ा में बहती हुई यह नदी माही नदी में मिल जाती है।
- अनास की प्रमुख सहायक नदी हरन है।
- लीलरी/लीलड़ी नदी इस नदी का उद्गम अरावली पर्वत श्रेण्यिों से होता है।
- पाली जिले में बहती हुई सूकड़ी नदी में मिलकर निम्बोल नामक स्थान पर लूनी नदी में मिल जाती है।
- ऐराव नदी ऐराव नदी का उद्गम प्रतापगढ़ जिले में होता है।
- बाँसवाड़ा जिले में यह नदी माही नदी में मिल जाती है।
चेप नदी
- चेप नदी का उद्गम कालीन्जरा की पहाड़ियों से होता है। आगे चलकर यह नदी माही नदी में मिल जाती है।
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
चम्बल नदी
- इस नदी का उद्गम मध्यप्रदेश, महुं, विध्यांचल पर्वत, जानापाऊ पहाड़ी से होता है।
- महु में बहने के पश्चात् . उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर में बहती हुई राजस्थान में चित्तौड़ के चौरासी गढ़ नामक स्थान से प्रवेश करती है।
- चित्तौड़, कोटा व बंदी में बहने के पश्चात् सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर की सीमा पर बहती हुई उत्तरप्रदेश में इटावा जिले के मुरादगंज नामक स्थान पर यमुना में मिल जाती है।
- चम्बल नदी को चर्मवती, कामधेनू, नित्यवाहिनी, सदावाहिनी आदि के नाम से भी जाना जाता है।
- यह राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है।
- इसकी लम्बाई 966 किमी. है।
- मध्यप्रदेश में इस नदी की लम्बाई 315 किमी, राजस्थान में इसकी लम्बाई 135 किमी तथा यह नदी राजस्थान व मध्यप्रदेश के 241 किमी. सीमा बनाती है। तथा उत्तरप्रदेश में इसकी लम्बाई 285 किमी. है।
- पलिया (सवाईमाधोपुर) से पिनाहट (धौलपुर ) के मध्य यह नदी 241 किमी. की अंतर्राज्यीय सीमा बनाती है।
- पूर्णतया राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी नदी बनास है।
- इसकी लम्बाई 480 किमी. है।
- यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में नामित यह राज्य की यह एकमात्र नदी है।
- चम्बल नदी पर चार बांध स्थित है, जो कि निम्नलिखित है गांधी सागर बांध (मध्यप्रदेश), राणा प्रताप सागर बांध (चित्तौड़गढ़), जवाहरसागर बांध (कोटा) व कोटा बैराज (कोटा)।
- कोटा बैराज पर जल विद्युत उत्पन्न नहीं की जाती है तथा इसका कैचमेंट एरिया सर्वाधिक है।
- चम्बल नदी पर चित्तौड़गढ के भैसरोड़गढ़ नामक स्थान पर चूलिया जल प्रपात है।
- इसकी कुल ऊँचाई 18 मीटर (54 फीट) है।
- सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर में चम्बल नदी का बहाव क्षेत्र बीहड़ व डांग क्षेत्र कहलाता है।
- चम्बल नदी में गांगेय सूस नामक एक विशेष स्तनपायी जीव पाया जाता है।
- अंतर्राज्यीय सीमा (राजस्थान + मध्यप्रदेश) बनाने वाली राज्य की एक मात्र नदी है।
- राज्य में यह सर्वाधिक कन्दराओं (गुफा) वाली नदी है।
- सर्वाधिक कन्दरांए कोटा जिले में है।
- धौलपुर दुर्ग इसी नदी के किनारे स्थित है।
- राज्य में सर्वाधिक अवनालिका अपरदन करने वाली नदी चम्बल है।
- कोटा में इस नदी के किनारे कोटा शहर, चम्बल घड़ियाल अभयारण्य, हैगिंग ब्रिज (झूलता पुल) स्थित है।
- चंबल नदी गहरे गाों में बहुत तीव्रता से बहती है, इसलिए इसे वाटर सफारी भी कहा जाता है।
- राज्य में सर्वाधिक सतही जल वाली नदी चम्बल है।
- बूंदी का केशोरायपाटन नगर इसी नदी के किनारे पर स्थित है।
- चम्बल नदी बूंदी जिले में केशोरायपाटन के नजदीक सर्वाधिक गहरी होती है।
- चम्बल नदी की प्रमुख सहायक नदियां बनास, कालीसिंध, पार्वती, ब्राह्मणी, सीप, कुराज, मेज, सिवाण, शीप्रा,
- परवन, छोटी कालीसिंध।
- प्रधानमंत्री नदी जोड़ो परियोजना के अंतर्गत सर्वप्रथम राजस्थान की पार्वती नदी को कालीसिंध नदी से तथा चंबल को बनास नदी से जोड़ा जाएगा।
बनास नदी
- इस नदी का उद्गम राजसमंद में खमनौर/ जसवंतगढ़ की पहाड़ी से होता है।
- राजसमंद में बहने के पश्चात् चित्तौड़ व भीलवाड़ा में बहती हुई अजमेर में प्रवेश करती है।
- इसके पश्चात टोंक व सवाई माधोपुर में बहती हुई सवाई माधोपुर जिले की खंडार तहसील के पदरा गांव के पास रामेश्वर धाम नामक स्थान पर चम्बल में मिल जाती है।
- बनास नदी को वन की आशा, वर्णाशा, वशिष्ट भी कहा जाता है।
- बनास पूर्णतः राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है।
- इस नदी की कुल लम्बाई 480 किमी है।
- बनास नदी टोंक में सर्पिलाकार रूप से बहती है।
- बनास नदी टोंक को दो भागों में विभाजित करती है।
- बनास भीलवाड़ा के मालगढ़ तहसील के बीगोद नामक स्थान पर बेड़च व मेनाल में मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है।
- बनास नदी रामेश्वर नामक स्थान पर सीप व चम्बल में मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है।
- बनास पर राजसमंद में नंदसमंद बांध, टोंक में बीसलपुर बांध , सवाई माधोपुर में ईश्दा बांध स्थित है।
सहायक नदीयां - बेड़च, मेनाल, कोठारी, खारी, मांशी, ढील, डाई, सोहादरा, मोरेल, ढुंढ ।
अन्य महत्वपूर्ण नदियां
मेनाल नदीउद्गम: माण्डलगढ़ {भीलवाड़ा}
इस नदी पर मेनाल जल प्रपात स्थित है।
बेड़च नदी
उद्गम: गोगुंदा पहाड़ी [उदयपुर]
चित्तौड़गढ़ जिला बेड़च नदी के किनारे स्थित है।
घोसुण्डा बांध (चित्तौड़गढ़)
कुल लंबाई: 180 किमी।
पार्वती नदी
उद्गम: सेहोर (मध्यप्रदेश)
किशनगंज इस नदी के किनारे स्थित है।
कालीसिंध
उद्गम: देवास (मध्य प्रदेश)
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