Bharat Me Urja Sansadhan, भारत में ऊर्जा संसाधन, energy resources in india in hindi, bharat me urja sansadhan pdf, Bharat Me Urja Sansadhan short trick, को पड़ेंगे।
Bharat Me Urja Sansadhan पोस्ट आपकी आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे - Bank, SSC, RRB, UPSC, UPPSC, REET आदि में सहायक होगा।
Bharat Me Urja Sansadhan पोस्ट आपकी आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे - Bank, SSC, RRB, UPSC, UPPSC, REET आदि में सहायक होगा।
आप Bharat Me Urja Sansadhan का पीडीऍफ़ भी डाउनलोड कर सकते हैं।
Bharat Me Urja Sansadhan pdf | भारत में ऊर्जा संसाधन
कोयला
ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्रान्ति के आधार कोयले को उद्योगों की जननी, काला सोना और शक्ति का प्रतीक कहा जाता है।
देश में आज भी कोयला शक्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है।
वर्तमान कोयला खनन उद्योग का विकास 1774 में आरम्भ हुआ, जब अंग्रेजों द्वारा रानीगंज में कोयले का पता लगाया गया।
भारत विश्व में कोयला उत्पादन की दृष्टि से चीन व अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर है।
भारत विश्व का 4.7 प्रतिशत कोयला उत्पादित करता है।
भारत की ऊर्जा का लगभग 60.0 प्रतिशत भाग कोयले से प्राप्त होता है।
कार्बन की मात्रा के आधार पर विश्व स्तर पर कोयले को चार प्रकारों में विभाजित किया जाता है।
(1) एन्थ्रेसाइट : कार्बन की मात्रा 80 से 90 प्रतिशत तक।
(2) बिटुमिनस : कार्बन की मात्रा 75 से 80 प्रतिशत तक ।
(3) लिग्नाइट : कार्बन की मात्रा 50 प्रतिशत तक।
(4) पीट : कार्बन की मात्रा 50 प्रतिशत से कम।
भारत में उपलब्ध कोयला दो भू-वैज्ञानिक काल खण्डों (अ) गौंडवाना युगीन, (ब) टर्शयरी काल से सम्बन्धित है।
Bharat Me Urja Sansadha |
(अ) गौंडवाना युगीन
उत्पादन व उपभोग की दृष्टि से गौंडवाना युगीन कोयले का सर्वाधिक महत्त्व है।
भारत वर्ष में इस प्रकार का कोयला विभिन्न नदियों की घाटियों में पाया जाता है।
(i) गोदावरी घाटी क्षेत्र
आन्ध्र प्रदेश राज्य में विस्तृत गोदावरी नदी की घाटी में देश के लगभग 7.5 प्रतिशत कोयले के भण्डार हैं ।
आदिलाबाद, करीमनगर, खम्माम, वारंगल और पश्चिमी गोदावरी मुख्य उत्पादक जिले हैं।
गोदावरी और तन्दूर नदियों के बीच के 250 वर्ग किमी क्षेत्र में प्रसिद्ध कोयला क्षेत्र फैला हुआ है।
राज्य में सिंगरेनी कोयले का बड़ा उत्पादक क्षेत्र है।
यहाँ बाराकर श्रेणी की चट्टानें 54 वर्ग किमी में फैली हुई है।
यहाँ कोयले की परतें दो मीटर से भी अधिक मोटी है।
आन्ध्र प्रदेश का वार्षिक कोयला उत्पादन 332 लाख टन है।
(ii) महानदी घाटी क्षेत्र
उड़ीसा राज्य में देश के लगभग 25 प्रतिशत कोयले के भण्डार मिलते हैं।
कुल उत्पादन का 15.3 प्रतिशत भाग यहाँ से प्राप्त होता है।
राज्य में ढेंकनाल जिले में तालचर कोयला क्षेत्र 548 वर्ग किमी में फैला है।
यहाँ का कोयला विद्युत उत्पादन, उर्वरक तथा गैस उत्पादन में प्रयुक्त होता है।
उड़ीसा प्रतिवर्ष 523 लाख टन कोयले का उत्पादन करता है।
(ब) टर्शयरी काल
भारत का 2 प्रतिशत कोयला टर्शयरी काल की एवं मेसोजाइक काल की चट्टानों में प्राप्त होता है।
इस प्रकार के कोयले के 225 करोड़ टन के भण्डार आंकलित किये गये हैं।
इन श्रेणी के कोयले के प्राप्ति के मुख्य क्षेत्रों में असम, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडू, राजस्थान, अरूणाचल प्रदेश और पश्चिमी बंगाल राज्य है।
पश्चिमी बंगाल में पनकाबाड़ी प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र है, यहाँ का कोयला बनावट में गौंडवाना युगीन कोयले से मिलता है।
अरूणाचल प्रदेश में डफाला पहाड़ियों में डीगरॉक प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
असम राज्य में लखीमपुर, शिवसागर जिलों में माकूम क्षेत्र 80 किमी लम्बाई में फैला है ।
यहाँ का कोयला गैस बनाने के लिये अधिक उपयोगी है।
मेघालय राज्य में गारोखाासी जयन्तियां पहाड़ियों में टर्शयरी काल के कोयले के भण्डार है।
(स) लिगनाइट कोयला
हालांकि कार्बन की मात्रा के अनुसार लिगनाइट कोयला घटिया माना जाता है परन्तु ताप विद्युत की दृष्टि से यह कोयला भी महत्त्वपूर्ण है।
इस प्रकार के कोयले के भण्डार तमिलनाडु में तिरूवनालोर व वेल्लोर जिले में फैला नवेली लिगनाइट कोयला भण्डार प्रसिद्ध है।
जहाँ 330 करोड़ टन लिगनाइट कोयले के भण्डार है।
यहाँ पर 1956 से नवेली लिगनाइट लिमिटेड द्वारा कोयला खनन किया जा रहा है।
राजस्थान के बीकानेर जिले में पलाना नामक स्थान पर लिगनाइट किस्म का कोयला मिलता है।
बाड़मेर जिले में भी वर्ष 2003 में लिगनाइट के भण्डारों का पता लगा है।
यहाँ पर बीकानेर में स्थित तापीय विद्युत गृह में इस कोयले का प्रयोग किया जाता है।
व्यापार
घरेलू माँग की पूर्ति के बाद भारत द्वारा कोयले का निर्यात अपने पड़ोसी देशों बाँग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यानमार एवं श्रीलंका को किया जाता है।
वर्ष 2010 में 521 करोड़ रूपये के कोयले का निर्यात किया गया।
भारत में उच्च कोटि का कोकिंग कोयला आस्ट्रेलिया, कनाड़ा व अन्य यूरोपीय देशों से आयात किया जाता है।
वर्ष 2012- 13 में 83,998.35 करोड़ रूपये के कोयले का आयात किया गया है।
पेट्रोलियम
भारत में लगभग 30 लाख वर्ष पुरानी अवसादी चट्टानों में इसके भण्डार उपलब्ध है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में विश्व का कुल संचित तेल का 0.5 प्रतिशत खनिज तेल उपलब्ध है।
भारत में तेल की प्राप्ति अकस्मात हुई है। जब 1860 में असम रेलवे कम्पनी ने रेलवे लाइन बिछाने के लिए मार्गरिटा क्षेत्र में खुदाई की जा रही थी।
विधिवत रूप से तेल के कुँओं की खुदाई आसाम राज्य में ही 1866 में माकूम नामक स्थान पर 36 मीटर की गहराई पर तेल प्राप्त किया गया है।
1890 में डिगबोई में 202 मीटर की गहराई पर तेल प्राप्त हुआ।
1899 में असम ऑयल कम्पनी का गठन किया गया।
1915 में बर्मा ऑयल कम्पनी ने सिलचर के निकट सूरमा घाटी में तेल खनन का कार्य प्रारम्भ किया।
1938 में नाहरकटिया क्षेत्र में तेल की खोज हुई।
1956 में शिवसागर जिले में तेल उपलब्ध हुआ।
1959 में बर्मा ऑयल कम्पनी और भारत सरकार के सांझे में ऑयल इण्डिया लिमिटेड की स्थापना हुई।
तेल एवं प्राकृति गैस आयोग (ONGC) : 1953 से भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने देश के विभिन्न हिस्सों में प्राकृतिक तेल की खोज का कार्य प्रारम्भ किया।
1956 में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग का गठन किया गया।
यह आयोग समुद्र के भीतर एवं स्थल भागों पर खनिज तेल की खोज का कार्य करता है।
भारत पेट्रोलियम कारोशन : जनवरी 1976 से भारत सरकार ने बर्मा शैल रिफाइनरी और बर्मा शैल ऑयल कम्पनी पर अधिकार करके भारत पेट्रोलियम कारोशन बनाया गया।
ऑयल इण्डिया लिमिटेड : खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस की खोज, खुदाई और उत्पादन करके उन्हें तेल शोधन कारखानों और उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का कार्य ऑयल इण्डिया लिमिटेड करता है।
उत्पादन एवं व्यापार
वर्तमान में देश के निम्नलिखित क्षेत्रों में खनिज तेल का खनन किया जा रहा है।
(1) आसाम
राज्य में डिगबोई, सुरमा घाटी और नवीन क्षेत्रों में खनिज तेल के भण्डार उपलब्ध है।
लखीमपुर जिले में डिगबोई, बधापुंग, हंसापुंग स्थानों पर खनिज तेल की प्राप्ति 2000 मीटर की गहराई पर होती है।
यहाँ पर डिगबोई में तेल शोधन कारखाना स्थापित है।
जो वर्ष में लगभग 4.0 मैट्रिक टन तेल का शोधन करता है।
आसाम के सुरमा घाटी क्षेत्र में बदरपुर, मशीनपुर और पथरिया स्थानों पर 1971 से तेल का खनन किया जा रहा है।
ब्रह्मपुत्र घाटी के नवीन तेल क्षेत्रों में नहरकटिया, हुगरीजन और मोरन स्थानों पर 1953 से उत्पादन प्रारम्भ हुआ।
प्रति वर्ष लगभग 25 लाख मैट्रिक टन खनिज तेल प्राप्त किया जा रहा है।
यहाँ पर रूद्र सागर, लकवा, गालेकी, अमगरी में तेल का खनन किया जाता है।
इन क्षेत्रों का तेल नूनमती व बरौनी की तेल शोधन शालाओं में शुद्ध किया जाता है।
(2) गुजरात
राज्य में लगभग 15,500 वर्ग किमी क्षेत्र में कच्छ की खाड़ी, सूरत, बड़ौदा, भडूंच, मेहसाना और खेड़ा जिलों में तेल के भण्डार है।
यहाँ पर अकलेश्वर क्षेत्र में 1200 मीटर की गहराई पर खनिज तेल प्राप्त होता है।
यहाँ का वार्षिक उत्पादन 30 लाख टन है।
अंकलेश्वर का पेट्रोल ट्राम्बे और कोयली शोधन शालाओं में भेजा जाता है।
गुजरात में खम्भात की खाड़ी में 15 लाख टन तेल और 5 लाख घन मीटर गैस प्रति वर्ष प्राप्त हो रही है। अहमदाबाद के पश्चिम में कलोल के निकट नवगांव, मेहसाणा, सानन्द, कोथाना स्थानों पर भी तेल प्राप्त हुआ है।
(3) उत्तरी क्षेत्र
पंजाब के लुधियाना, होशियारपुर और दासूजा क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश के ज्वालामुखी, धर्मशाला और नूरपुर तथा जम्मू कश्मीर के मुसलगढ़ में खनिज तेल प्राप्ति की भरपूर संभावनाएं है।
अभी इन स्थानों पर प्राकृतिक गैस प्राप्त हुई है।
तेल शोधन शालाएँ
देश में कुल 22 तेल शोधन कारखाने कार्यरत है।
इनमें से 17 सार्वजनिक क्षेत्र में 2 संयुक्त क्षेत्र तथा 3 निजी क्षेत्र में कार्यरत है।
प्रमुख तेल शोधन शालाओं की संक्षिप्त जानकारी सारणी निचे में दी गई है।
पाइप लाइनें (Pipe Lines)
भारत में अशुद्ध तेल को शोधनशाला तक एवं पेट्रोलियम पदार्थों को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए पाइप लाइनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।भारत की प्रमुख पाइप लाइनें इस प्रकार हैं -
जल विद्युत
ऊर्जा के सभी रूपों में विद्युत शक्ति सबसे व्यापक और सहज है।
विद्युत शक्ति के अनेक विशिष्ट गुण है।
इसलिये इसकी मांग भी अधिक है।
विकास भारत में जल विद्युत शक्ति का विकास 1897 में दार्जलिंग में विद्युत आपूर्ति के साथ प्रारम्भ हुआ।
बाद में कर्नाटन में शिव समुन्द्रम में जल विद्युत शक्ति गृह की स्थापना की गई।
1947 तक देश में जल विद्युत शक्ति का विशेष विकास नहीं हुआ, परन्तु पंचवर्षीय योजना के दौरान तेजी से विद्युत का विकास हुआ।
इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों में जल विद्युत योजनाओं में भारी पूँजी का निवेश किया गया।
देश में सन् 2010 में विद्युत उत्पादन 163.6 हजार मेगावाट था।
विद्युत के विकास के लिये केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण की स्थापना की गई।
1975 में जल विद्युत के विकास के लिये राष्ट्रीय जल विद्युत शक्ति निगम की स्थापना की गई।
वर्तमान में 18 राज्यों में राज्य विद्युत बोर्ड स्थापित है।
देश में लघु जल विद्युत परियोजनाओं की कुल अनुमानित क्षमता 15000 मेगावाट है।
31 दिसम्बर 2007 तक 611 जल विद्युत की परियोजनाएँ पूरी कर ली गई है तथा 225 परियोजनाएँ निर्माणाधीन है।
विभिन्न राज्यों की प्रमुख जल विद्युत परियोजनाएँ इस प्रकार है-
आन्ध्र प्रदेश : नागार्जुन सागर, सिलेरू, श्रीशैलम, मचकुण्ड, तुंगभ्रदा तथा निजाम सागर |
हिमाचल प्रदेश : बैरासिउल, नापचा, झाखड़ी, रामपुर, लुहरी, खाद्य, चमेरा, परावती, चिरचिन्द-चम्बा।
पंजाब : देहर (व्यास), भाखड़ा, पोंग, गंगवान, कोटला, सनाम, भोरूका।
उत्तराखण्ड : खटीमा, टिहरी, देवसारी, विष्णुगाद पिपलकोटी।
झारखण्ड : सुवर्णरेखा, मैथान।
राजस्थान : राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर, माही बजाज सागर।
उड़ीसा : हीराकुण्ड, बालीमेला ।
महाराष्ट्र : जल विद्युत उत्पादन में अग्रणी है।
यहाँ जल विद्युत के विकास की उत्तम भौगोलिक दशाएँ मौजूद है।
टाटा जलविद्युत (तीन शक्ति गृह), भिवपुरी, खोपोली, मीरा, कोयना, पूर्णा, वेतरणा, भटनागर-बीड़ मुख्य जल विद्युत केन्द्र है।
कर्नाटक : विद्युत शक्ति का उत्पादन सर्वप्रथम इसी राज्य में हुआ था।
कावेरी पर शिवसमुद्रम, शिमला, जोग, तुंगभ्रदा, भद्रा, शरावति, आदि प्रमुख जल विद्युत योजनाएँ हैं।
जरूर पढ़ें
आणविक ऊर्जा
देश में ऊर्जा की बढ़ती हुई माँग और सीमित संसाधनों को देखते हुए परमाणु ऊर्जा का विकास किया गया है।
यह ऊर्जा रेडियोधर्मी परमाणुओं के विखण्डन से प्राप्त की जाती है।
प्राकृतिक विखण्डन जटिल एवं खर्चीला होता है।
परन्तु इससे प्राप्त विद्युत पर्याप्त सस्ती पड़ती है।
इसका कारण है कि एक किलोग्राम यूरेनियम से जितनी विद्युत पैदा की जा सकती है उसने के लिये 20 से 25 लाख किलोग्राम कोयले की आवश्यकता होती है।
भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास अन्य देशों की तुलना में अभी कम है।
यहाँ देश के कुल ऊर्जा का तीन प्रतिशत भाग परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित है।
देश में परमाणु ऊर्जा के विकास करने के लिये 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग स्थापित किया गया है।
परमाणु शक्ति के स्रोत
परमाणु शक्ति के लिये रेडियोधर्मिता युक्त विशिष्ट प्रकार के खनिजों, यूरेनियम, थोरियम, बेरेलियम, ऐल्मेनाइट, जिरकन, ग्रेफाइट और एन्टीमनी का प्रयोग किया जाता है।
भारत में इस प्रकार के खनिजों की उपलब्धि का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
(1) यूरेनियम
बिहार के सिंहभूम और राजस्थान की धारवाड़ एवं आर्कियन चट्टानों, उत्तरी बिहार, आन्ध्र प्रदेश के नैल्लौर, राजस्थान के अभ्रक के क्षेत्रों में पैग्मेटाइट चट्टानें में, केरल के समुद्र तटीय भागों में मोनोजाइट निक्षेपों में, हिमाचल प्रदेश के कुल्लु, चमोली जिलों की चट्टानें में यूरेनियम प्राप्त किया जाता है।
(2) थोरियम
केरल की समुद्र तटीय रेत में 8-10 प्रतिशत तथा बिहार के रेत में 10 प्रतिशत तक मोनोजाइट खनिज प्राप्त होता है। जिससे थोरियम प्राप्त किया जाता है।
(3) इल्मेनाइट
भारत के पश्चिमी तट पर कुमारी अन्तरीप, नर्बदा नदी के एस्चूरी, महानदी की रेत से प्राप्त किया जाता है। केरल की रेत में इल्मेनाइट के 93 प्रतिशत भण्डार उपलब्ध है।
(4) बेरिलियम
राजस्थान, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू के अभ्रक खनन क्षेत्रों से बेरिलियम प्राप्त किया जाता है।
(5 ग्रेफाइट
उड़ीसा में कालाहाण्डी, गंजाम, कोरापुट जिलों, आन्ध्र प्रदेश में वारंगल, विशाखापट्टनम, पश्चिमी गोदावरी, तमिलनाडु में तीरूनवेली, कर्नाटक में मैसूर, राजस्थान में जयपुर, अजमेर, मध्य प्रदेश में बेतूल, बिहार में भागलपुर, सिक्किम में सूंचताग्ग जिलों से प्राप्त किया जाता है।
ग्रेफाइट के कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत उड़ीसा, 20 प्रतिशत बिहार, 18 प्रतिशत आन्ध्र प्रदेश से प्राप्त होता है।
परमाणु शक्ति का विकास
भारत में परमाणु कार्यक्रम के शुभारम्भ कर्ता डॉ. होमी अँहागीर भाभा थे।
1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना हुई।
1954 में परमाणु ऊर्जा संस्थान ट्रॉम्बे में स्थापित किया गया।
जिसे 1967 में भाभा अनुसंधान केन्द्र नाम दिया गया। 1987 में भारतीय परमाणु विद्युत निगम की स्थापना की गई।
जिसके अधीन दस परमाणु शक्ति गृह है।
जिनकी कुल स्थापित विद्युत क्षमता 2770 मेगावाट है।
वर्तमान में देश में 17 परमाणु रियेक्टर संचालित हो रहे है जिनकी कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 4800 मेगावाट है।
भारत में स्थापित परमाणु ऊर्जा केन्द्रों का विवरण इस प्रकार है -
गैर पम्परागत ऊर्जा संसाधन
परम्परागत ऊर्जा के सभी संसाधन सीमित और समाप्त प्राय है।
पर्यावरण की दृष्टि से भी वे अधिक प्रदूषणकारी होते हैं।
इसलिए सम्पूर्ण विश्व और भारत में ऊर्जा के नव्यकरणीय और गैर परम्परागत संसाधनों के उपयोग पर बल दिया जा रहा है।
1982 में ऊर्जा मंत्रालय के अधीन गैर परम्परागत ऊर्जा विभाग स्थापित किया गया।
1987 में विश्व बैंक की सहायता से भारतीय नव्यकरणीय विकास एजेन्सी (IRDA) की स्थापना की गई है।
इस संस्था द्वारा भारत में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जैविक ऊर्जा, महासागरीय ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा के विकास, उपयोग पर जोर दिया जा रहा है।
1. पवन ऊर्जा
भारत जैसे विशाल देश में पवन ऊर्जा की कुल क्षमता 45000 मेगावाट है।
एशिया महाद्वीप की विशालतम पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन की 150 मेगावाट उत्पादन क्षमता की परियोजना मुप्पडाल, तमिलनाडु में स्थित है।
देश में पवन ऊर्जा के उत्पादन के क्षेत्र में तमिलनाडू राज्य का स्थान प्रथम है।
2. सौर ऊर्जा
भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है।
जहाँ पर सौर ऊर्जा के उत्पादन की अपार संभावनाएँ उपलब्ध है।
देश के अधिकाँश भागों में 300 से भी अधिक दिन खुली और स्वच्छ धूप प्राप्त होती है।
यहाँ प्रति वर्ष 5000 ट्रीलियन किलोवाट/ प्रति घण्टा सूर्य विकिरण प्राप्त होता है।
सौर ऊर्जा से पानी गरम करने, फसलें पकानें, भोजन बनाने, विद्युत पम्प चलाने जैसे एवं औद्योगिक एवं घरेलू विद्युत उत्पादन का कार्य किया जाने लगा है।
ऊर्जा मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सौर तापीय ऊर्जा कार्यक्रम एवं सौर फोटोवोल्टीक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।
भारत में आंध्रप्रदेश के तिरूपति बालाजी देवस्थान द्वारा विश्व की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा संचालित भोजन बनाने की प्रणाली अक्टूबर 2002 में शुरू की गई।
जिसमें 15000 लोगों का प्रतिदिन भोजन तैयार किया जा रहा है।
इसी प्रकार राजस्थान में बिडला इस्टूट ऑफ टेक्नोलॉजी एण्ड साइन्स पिलानी में राजस्थान का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा वाटर हीटर लगाया गया है। जहाँ 55 हजार लीटर पानी को गर्म किया जा रहा है।
सौर ऊर्जा का अब वाणिज्यिक स्तर पर भी प्रयोग किया जाने लगा है।
वर्ष 2010 तक देश में 15 लाख वर्ग मीटर सौर ऊर्जा संग्राहक क्षेत्र स्थापित किया जा चुका है।
जिसकी 66.5 मेगावाट क्षमता की 10,38,000 से अधिक फोटोवोल्टिक प्रणालियाँ विकसित की गई है।
देश में 6 लाख घरेलू प्रकाश उपकरण, 8 लाख सोलर लालटेन, 90 हजार सौर ऊर्जा की संचालित सड़क लाइटें और 141 सौलर पावर पेक स्थापित किये जा चुके हैं।
वर्तमान में देश में 60 शहरों को सौर ऊर्जा नगरों के रूप में विकसित करने की योजना है।
इस योजना के तहत 50 हजार से 5 लाख तक की जनसंख्या वाले नगरों को सम्मिलित किया गया है।
देश में सौर ऊर्जा के विकास के लिये 11 जनवरी, 2010 को जवाहर लाल नेहरू सोलर मिशन प्रारम्भ किया गया ।
इस मिशन में 13वीं पंचवर्षीय योजना के तहत 2022 तक 20000 मेगावाट सौर ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
देश में सौर ऊर्जा उत्पादन को सारणी संख्या 17.7 में दर्शाया गया है।
3. जैविक ऊर्जा
जैविक ऊर्जा के विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है।
जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रकार की बायोमास सामग्री का अधिकतम उपयोग करना है।
इसमें वन और कृषि अपशिष्टों से ऊर्जा उत्पादन सम्मिलित है।
भारत सरकार ने 2015 तक 16.5 मिलियन हेक्टर पर जेट्रोफा नामक फसल के रोपण का लक्ष्य रखा गया है।
जिससे बायो डीजल बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना संचालित हो सकेगी।
11वीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 620 मेगावाट बायोमास ऊर्जा विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है ।
अक्टूबर 2013 तक 1248 मेगावाट विद्युत क्षमता प्राप्त की गई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर, कूड़ा-करकट और मानव मल से बायोगैस का विकास किया गया है।
इसका उद्देश्य गांवों में सस्ते एवं वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत उपलब्ध कराना है।
नगरों एवं उद्योगों से निकलने वाले कूड़े-कचरे का उपयोग ऊर्जा के उत्पादन में किया जाने लगा है।
महानगरों में इस कार्यक्रम को संचालित कर पर्यावरण की रक्षा के साथ साथ ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों का भी विकास किया जा रहा है।
इस प्रकार के संयंत्र तानूकू (आंध्र प्रदेश), फैजाबाद (उत्तर प्रदेश), अंकलेश्वर (गुजरात), मुक्तसर (पंजाब), बेलगाम (कर्नाटक) में स्थापित किये गये हैं।
बायोगैस बिजली उत्पादन के लिये कचरे से ऊर्जा प्राप्त करने की 20 परियोजनाएँ प्रारम्भ की गई है।
जिनकी कुल स्थापित क्षमता 25.27 मेगावाट है।
नगर निगमों के द्वारा ठोस कचरे से ऊर्जा प्राप्त करने के लिये हैदराबाद, विजयवाड़ा और लखनऊ में 17.6 मेगवाट क्षमता वाली तीन परियोजनाएँ स्थापित की गई है।
लुधियाना में पशुओं के अपशिष्टों पर आधारित परियोजना, सूरत में गन्दे जल की सफाई संयंत्र में बायोगैस से ऊर्जा उत्पादन, विजयवाड़ा में सब्जी बाजार के कचरे से 150 किलोवाट का संयंत्र स्थापित किया गया है।
चेन्नई में 250 किलोवाट की क्षमता वाला संयंत्र सब्जी बाजार के कचरे का उपयोग कर रहा है।
भारत में ऊर्जा संसाधन - Bharat Me Urja Sansadhan PDF
Name of The Book : *Bharat Me Urja Sansadhan PDF in Hindi*Document Format: PDF
Total Pages: 10
PDF Quality: Normal
PDF Size: 1 MB
Book Credit: Harsh Singh
Price : Free
tags: Bharat Me Urja Sansadhan, भारत में ऊर्जा संसाधन, energy resources in india in hindi, bharat me urja sansadhan pdf, Bharat Me Urja Sansadhan short trick
Start The Quiz भारत के प्रमुख़ दर्रे
भारत के प्रमुख़ बंदरगाह
भारत की प्रमुख नदियां
दक्षिण भारत की नदियाँ
प्रायद्वीप भारत की नदियाँ
भारत की प्रमुख झीलें
Note:- sscwill.in वेबसाइट में उपयोग किए गए मैप वास्तविक मैप से अलग हो सकते हैं। मैप्स को विद्यार्थियों की सुविधा के लिए सरल बनाया गया है।स्टीक जानकारी के लिए आधिकारिक वेबसाइट का उपयोग करें.....🙏🙏🙏
Start The Quiz
भारत के प्रमुख़ दर्रे
भारत के प्रमुख़ बंदरगाह
भारत की प्रमुख नदियां
दक्षिण भारत की नदियाँ
प्रायद्वीप भारत की नदियाँ
भारत की प्रमुख झीलें
भारत के प्रमुख़ बंदरगाह
भारत की प्रमुख नदियां
दक्षिण भारत की नदियाँ
प्रायद्वीप भारत की नदियाँ
भारत की प्रमुख झीलें
Note:- sscwill.in वेबसाइट में उपयोग किए गए मैप वास्तविक मैप से अलग हो सकते हैं। मैप्स को विद्यार्थियों की सुविधा के लिए सरल बनाया गया है।
स्टीक जानकारी के लिए आधिकारिक वेबसाइट का उपयोग करें.....🙏🙏🙏
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box