महाराणा सांगा का इतिहास -
☞ महाराणा कुंभा के बाद महाराणा संग्राम सिंह मेवाड़ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक बने, यह सांगा के नाम से प्रसिद्ध हैं।
☞ इन्होंने अपनी शक्ति के बल पर मेंवाड साम्राज्य का विस्तार किया एवं राजपूताना के सभी नरेशों को अपने अधीन संगठित किया।
☞ रायमल की मृत्यु के बाद सन् 1509 में राणा सांगा मेवाड़ का महाराणा बना।
☞ सांगा ने अन्य राजपूत सरदारों के साथ शक्ति को संगठित किया।
☞ पड़ोसी राज्य गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा से भी संघर्ष किया।
☞ कुंभाकालीन गौरव प्राप्त करने की दृष्टि से मुस्लिम शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष करना जरूरी था।
☞ सांगा का गुजरात के बादशाह से 1520 ई. में संघर्ष हुआ।इसमें सांगा विजयी हुआ।
☞ इसी प्रकार मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को भी राणा सांगा ने परास्त करके कैद कर लिया तथा बाद में अच्छा व्यवहार करने की शर्त पर उसे रिहा कर दिया गया।
☞ महाराणा सांगा ने अपनी शक्ति को संगठित कर दिल्ली सल्तनत के अधीनस्थ मेवाड़ के निकटवर्ती भागों को अपने राज्य में मिलाना आरंभ कर दिया।
☞ सन् 1517 में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी व सांगा में खतौली का युद्ध हुआ जिसमें सुल्तान इब्राहिम लोदी बुरी तरह पराजित हुआ।
☞ प्राजय के बाद सुल्तान को सांगा ने बाड़ी (धौलपुर) के युद्ध में और पराजित किया।
☞ स्थानीय साहित्य में उल्लेख मिलता है कि राणा ने कई बार दिल्ली, मांडू और गुजरात के सुल्तानों को पराजित किया ।
☞ पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली सल्तनत पर बाबर ने अधिकार कर लिया उसके बाद असली चुनौती महाराणा सांगा की थी,क्योंकि राणा सांगा ही उस समय ऐसा व्यक्ति था जो दिल्ली पर शासन स्थापित करने की क्षमता रखता था।
☞ उस समय शक्ति का केंद्र मेवाड़ बन गया था।
☞ सभी पड़ोसी राज्य सांगा की शक्ति को मान्यता देने लगे थे
☞ कर्नल टॉड के अनुसार 7 उच्च श्रेणी के राजा, 9 राव व 104 सरदार सदैव उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे।
☞ बाबर और राणा सांगा के मध्य सत्ता की स्थापना को लेकर संघर्ष निश्चित था।
☞ बाबर ने प्रारंभ में धौलपुर व कालवी पर अधिकार कर लिया। बयाना पर सांगा का अधिकार था।
☞ सांगा ने बयाना के युद्ध में मुगलों को बुरी तरह पराजित किया।
☞ मुगल सैनिकों ने सांगा के शौर्य के किस्से बाबर व अन्य सैनिकों को बताए।
☞ जिससे बाबर की सेना का मनोबल टूट गया। बाबर और राणा सांगा के मध्य खानवा का युद्ध हुआ।
☞ राणा सांगा के प्रहार से मुग़ल सेना प्रारंभ में विचलित होने लगी।
☞ बाबर ने राजपूतों के पाश्र्व भाग पर आक्रमण कर दिया। इसी बीच तीर लगने से राणा घायल हो गए।
☞ राणा सांगा को बेहोश अवस्था में युद्ध के मैदान से हटा दिया ।
☞ होश आने पर राणा ने पुन: बाबर से लड़ने की इच्छा प्रकट की लेकिन सामंतों ने खानवा में हुए विनाश की बात कहकर ऐसा नहीं करने की सलाह दी।
☞ राणा सांगा ने प्रतिज्ञा कि जब तक वह बाबर को नहीं हरा देंगे चित्तौड़ नहीं पहुंचेंगे।
☞ राणा सांगा ने जनवरी 1528 में बाबर के विरुद्ध चंदेरी के मेदिनीराय की सहायता के लिए प्रस्थान किया, लेकिन कालपी से थोड़ा दूर स्वास्थ्य खराब होने के कारण 30 जनवरी 1528 को इनका देहांत हो गया।
☞ महाराणा सांगा अंतिम राजपूत सम्राट थे जिन्होंने अपने नेतृत्व में सभी राजपूत शासकों को विदेशी आक्रमणों से सुरक्षा करने और उनसे वीरतापूर्वक मुकाबला करने के लिए संगठित किया।
☞ राणा सांगा के नेतृत्व में 108 राजा महाराजा लड़ते थे।
☞ उन्होंने निरंतर युद्ध शौर्य एम प्रक्रम से देश की रक्षा की।
इसी भावना से प्रेरित होकर जनता ने भी महाराणा का पूरा साथ दिया।
☞ महाराणा ने भी इसी प्रेरणा से दिल्ली, मांडू और गुजरात के शासकों को हराया ही नहीं बल्कि उन्हें बंदी बना कर छोड़ दिया।
☞ राजपूताने के सभी राजा व बाहरी राजा भी महाराणा सांगा की अधीनता व मेवाड़ के गौरव के कारण उसके झंडे के नीचे लड़ने में अपना गौरव समझते थे।
☞ महाराणा की शरीर पर 80 घाव तथा युद्ध में एक हाथ एक पैर क्षतिग्रस्त होते हुए भी उनका शरीर वज्र की तरह मजबूत था।
☞ इन्होंने हिम्मत, मर्दानगी और वीरता को अपनाकर अपने आप को अमर बना दिया।
☞ हरबिलास शारदा लिखते हैं कि मेवाड़ के महाराणाओंं में सांगा सर्वाधिक प्रतापी शासक था।
☞ राणा सांगा ने अपने पुरुषार्थ के द्वारा मेवाड़ को उन्नति के शिखर तक पहुंचाया इतना होने पर भी अंततः महाराणा सांगा विदेशी शत्रु की कुटिल चाल और युद्ध कौशल को नहीं समझ पाए और युद्ध की नवीन तकनीकी को नहीं अपना सके इसी का शत्रु ने लाभ उठाया।
इन्हें भी जानें
बापा रावल
☞ मेवाड़ के गुहिल वंशी शासकों में बप्पा रावल का महत्वपूर्ण स्थान है। बापा के जन्म व माता-पिता के नामों के बारे में विद्वानों के पास उपयुक्त प्रमाण नहीं है, लेकिन इनका बचपन मेवाड़ के एकलिंगजी के पास नागदा गांव में व्यतीत हुआ इस पर सभी विद्वानों का एकमत है।
☞ यहां नागदा के जंगलों में गाय चलाते हुए बापा का संपर्क हारित राशि नामक ऋषि से हुआ।
☞ हारित राशि पाशुपत लकुलीश मत में दीक्षित एक सन्यासी .....Read more
प्रथ्वीराज चौहान का इतिहास
☞ 12 वीं शताब्दी के अंतिम चरण में चौहान साम्राज्य उतरी भारत में अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था।
☞ चौहान साम्राज्य का विस्तार कन्नौज से लेकर जहाजपुर (मेवाड़) की सीमा तक विस्तृत हो गया था।
☞ सोमेश्वर देव की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान 11 वर्ष की अल्पआयु मे सीहासन पर बैठा।
☞ पृथ्वीराज चौहान की माता कर्पूरीदेवी अपने अल्पवयस्क पुत्र के राज्य की सरंक्षिका......Read more
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box