बापा रावल
☞ मेवाड़ के गुहिल वंशी शासकों में बप्पा रावल का महत्वपूर्ण स्थान है। बापा के जन्म व माता-पिता के नामों के बारे में विद्वानों के पास उपयुक्त प्रमाण नहीं है, लेकिन इनका बचपन मेवाड़ के एकलिंगजी के पास नागदा गांव में व्यतीत हुआ इस पर सभी विद्वानों का एकमत है।
☞ यहां नागदा के जंगलों में गाय चलाते हुए बापा का संपर्क हारित राशि नामक ऋषि से हुआ।
Bapa Rawal ka Itihas |
☞ हारित राशि पाशुपत लकुलीश मत में दीक्षित एक सन्यासी थे।
☞ बापा ने हरित ऋषि की खूब सेवा की।
☞ यह समय प्रतिकूल परिस्थितियों का था। अरब खलीफाओं के खूनी संघर्ष व धर्म परिवर्तन संबंधी अत्याचारों से हारित राशि अत्यधिक दुखी थे।
☞ बापा के व्यक्तित्व, विचारों तथा प्रतिभा से हारित राशि अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने बापा में वह सभी गुण देखे जो तत्कालीन प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल परिस्थितियों में बदल सकते थे।
☞ यही सोच कर बापा को हारित राशि ने उसी तरह से शिक्षित किया जिस तरह चाणक्य ने चंद्रगुप्त को तैयार किया था तथा हारित राशि ने अपने जीवन का अंतिम समय जानकर बाबा को वरदान दिया कि तू मेवाड़ के शासक बनोगे और तुम्हारे वंशजों के हाथ में मेवाड़ का राजा कभी नहीं जाएगा। इस वरदान के साथ-साथ हारित राशि ने बापा को आर्थिक सहयोग भी दिया और यह भी कहा कि तुम्हारा संबोध रावल होगा।
☞ हारित राशि के अवसान के बाद बापा रावल ने सेना का संगठन किया और चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर उस पर कब्जा किया तथा अपने राज्य की सीमा का विस्तार भी किया।
☞ इस समय पश्चिम भारत को अरब आक्रमण से लगातार संघर्ष करना पड़ रहा था। इस विषम परिस्थितियों को अनुभव कर बापा रावल ने अरब सेना से टक्कर लेने का निश्चय किया तथा
☞ उसने प्रतिहार नागभट्ट प्रथम, सांभर व अजमेर नरेश अजय राज, हाडोती के धवल, माड़ (जैसलमेर) के शासक देवराज भाटी, एवं सिंध के राजा दाहिर सैन से मिलकर एक संयुक्त मोर्चा बनाया।
☞ बप्पा रावल ने यहां कई विवाह किए। धर्मांतरित हुए लोगों को पुन हिंदू बनाया।
☞ फतुहल बलदन नामक अरबी ग्रंथ का लेखक बताता है कि अब भारत में पुन: मूर्ति पूजा आरंभ हो गई।
☞ बापा रावल ने अपने जीवन के चतुर्थाश्रम में प्रवेश करने पर अपने पुत्र को राज्य सौंप कर हारित राशि की परंपरा में सन्यास ग्रहण किया और सामान्य अवस्था में ही उसका देहांत हुआ। एकलिंगजी से कोई 3 किलोमीटर उत्तर दिशा में बप्पा रावल का अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार स्थल को आज भी बप्पा रावल के नाम से जाना जाता है, जहां पर बप्पा रावल का मंदिरनुमा समाधि स्थल बना हुआ है।
☞ डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने बापा का स्थान मेवाड़ के इतिहास में अग्रणी स्वीकार किया है व धर्म अनिष्ट था।
इन्हें भी जानें
प्रथ्विराज चौहान -
☞ 12 वीं शताब्दी के अंतिम चरण में चौहान साम्राज्य उतरी भारत में अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था।
☞ चौहान साम्राज्य का विस्तार कन्नौज से लेकर जहाजपुर (मेवाड़) की सीमा तक विस्तृत हो गया था।
☞ सोमेश्वर देव की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान 11 वर्ष की अल्पआयु मे सीहासन पर....Read more
महाराणा सांगा
☞ महाराणा कुंभा के बाद महाराणा संग्राम सिंह मेवाड़ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक बने, यह सांगा के नाम से प्रसिद्ध हैं।
☞ इन्होंने अपनी शक्ति के बल पर मेंवाड साम्राज्य का विस्तार किया एवं राजपूताना के सभी नरेशों को अपने अधीन संगठित किया।
☞ रायमल की मृत्यु के बाद सन् 1509 में राणा सांगा मेवाड़ का महाराणा .....Read more
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